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अध्याय २९ : रौलट-ऐक्ट और मेरा धर्म-संकट ४६१

दृष्टि के कारण नहीं अखरता । वह तो मुझे सत्य की दृष्टि से अखरता है। अहिंसा को जितना मैं जान सका हूं उसके बनिस्बत मैं सत्यको अधिक जानता हूं, ऐसा मेरा खयाल है । और यदि मैं सत्य को छोड़ दूं तो अहिंसा की बड़ी उलझनें मैं कभी भी न सुलझा सकूंगा, ऐसा मेरा अनुभव है । सत्य के पालन का अर्थ है लिये गए व्रतोंके शरीर और आत्मा की रक्षा, शब्दार्थ और भावार्थ का पालन । यहां पर मैंने आत्माका--भावार्थका नाश किया है । यह मुझे सदा ही अखरता रहता है । यह जानने पर भी व्रत के संबंध में मेरा क्या धर्म है, मैं यह नहीं जान सका अथवा यों कहिए कि मुझमें उसके पालन करने की हिम्मत नहीं है । दोनों एक ही बात है, क्योंकि शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव होता है । ईश्वर, मुझे श्रद्धा दे । बकरी का दूध शुरू करने के थोड़े दिन बाद डा० दलाल ने गुदा-द्वार में ऑपरेशन किया और वह बहुत कामयाब साबित हुआ । अभी यों मैं बीभारी से उठने की आशा बांध ही रहा था और अखबार पढ़ना शुरू किया था कि इतने में ही रौलट-कमिटी की रिपोर्ट मेरे हाथ लगी। उसमें जो सिफारिश की हुई थीं उन्हें देखकर मैं चौंक उठा। भाई उमर और शंकरलाल ने कहा कि इसके लिए तो कुछ जरूर करना चाहिए । एकाध महीने में मैं अहमदाबाद गया । वल्लभभाई मेरे स्वास्थ्य के हाल-चाल पूछने करीब-करीब रोज आते थे । मैंने इस बारे में उनसे बातचीत की और यह सूचित भी किया कि कुछ करना चाहिए । उन्होंने पूछा-- “ क्या किया जा सकता है ?” जवाब में मैंने कहा-- “ अगर कमिटीकी सिफारिशों के अनुसार कानून बन ही जाय, और यदि इसके लिए प्रतिज्ञा लेनेवाले थोड़े से भी मनुष्य मिल जायं तो हमें सत्याग्रह करना चाहिए । अगर मैं रोग-शैय्या पर न रहा तो मैं अकेला भी लड़ पडू और यह आशा रक्खूं कि पीछे से और लोग भी मिल रहेंगे । पर मेरी इस लाचार हालत में अकेले लड़ने की मुझमें बिलकुल ही शक्ति नहीं है । ” इस बातचीत के फलस्वरूप ऐसे लोगों की एक छोटी-सी सभा करने का निश्चय हुआ, जो मेरे संपर्क में ठीक-ठीक आये थे । रौलट-कमिटी को मिली गवाहियों पर से मुझ यह तो स्पष्ट मालूम हो गया था कि उसने जैसी सिफारिश की है वैसे कानून की कोई जरूरत नहीं हैं, और मेरे नजदीक यह बात भी उतनी ही स्पष्ट थी कि ऐसे कानून को कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र स्वीकार नहीं कर सकता ।