पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४७९

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४६२ आत्म-कथा : भाग ५ सभा हुई । उसमें शायद ही कोई बीस मनुष्यों को निमंत्रण दिया गया होगा । मुझे जहां तक स्मरण है, उसमें वल्लभभाई के सिवा श्रीमती सरोजिनी नायडू, मि० हार्निमेन, स्व० उमर सुबानी, श्री शंकरलाल बैंकर, श्रीमती अनसूया बहन इत्यादि थे । प्रतिज्ञापत्र तैयार किया गया और मुझे ऐसा स्मरण है कि “जितने लोग वहां मौजूद थे सभी ने उसपर दस्तखत किये थे । इस समय मैं कोई अखबार नहीं निकालता था । हां, समय-समयपर अखबारों में लिखता जरूर था । वैसे ही इस समय भी मैंने लिखना शुरू किया और शंकरलाल बैंकर ने अच्छी हलचल शुरू कर दी । उनकी काम करने की और संगठन करने की शक्ति का उस समय मुझे अच्छा अनुभव हुआ । मुझे यह असंभव प्रतीत हुआ कि उस समय कोई भी मौजूदा संस्था सत्याग्रह जैसे शस्त्र को उठा ले, इसलिए सत्याग्रह-सभा की स्थापना की गई । उसमें मुख्यतः बंबई से नाम मिले और उसका केंद्र भी बंबई में ही रक्खा गया । प्रतिज्ञा-पत्र पर दस्तखत होने लगे और जैसा कि खेड़ाकी लड़ाई में हुआ था इसमें भी पत्रिकायें निकाली गई और जगह-जगह सभायें की गई । इस सभा का अध्यक्ष मैं बना था । मैंने देखा कि शिक्षित-वर्ग से मेरी पटरी अधिक न बैठ सकेगी । सभा में गुजराती भाषा ही इस्तेमाल करने का मेरा आग्रह और मेरी दूसरी कार्य-पद्धति को देखकर वे चक्कर में पड़ गये । मगर मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि बहुतेरोंने मेरी कार्य-पद्धति को निभा लेने की उदारता दिखाई । परंतु आरंभ ही में मैंने यह देख लिया कि यह सभा दीर्घकाल तक नहीं चल सकेगी। फिर सत्य और अहिंसा पर जो मैं जोर देता था वह भी कुछ लोगों को अप्रिय हो पड़ा था । फिर भी शुरूआत में तो यह नया काम बड़े जोरों से चल निकला ।