पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८०

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अध्याय ३० : वह अद्भुत दृश्य ४६३ ३० वह अद्भुत दृश्य । एक ओर रौलट-कमिटी के विरुद्ध आंदोलन बढ़ता चला और दूसरी ओर सरकार उसकी सिफारिशों पर अमल करने के लिए कमर कसती गई । रौलट-बिल प्रकाशित हुआ । मैं धारा-सभाकी बैठक में सिर्फ एक ही वार गया हूं । सो भी रौलट-बिलकी चर्चा सुनने । शास्त्रीजी ने बहुत ही धुंआधार भाषण किया और सरकार को चेतावनी दी । जब शास्त्रीजी की वाग्धारा चल रही थी, उस समय वाइसराय उनकी ओर ताक रहे थे । मुझे तो ऐसा लगा कि शास्त्रीजी के भाषण का असर उनके मन पर पड़ा होगा । शास्त्रीजी पूरे-पूरे भावावेश में आ गये थे । किंतु सोये हुएको जगाया जा सकता है । जागता हुआ सोने का ढोंग करे तो उसके कान में ढोल बजाने से भी क्या होगा । धारा-सभा में बिलों की चर्चा करने का प्रहसन तो करना ही चाहिए । सरकार ने वह प्रहसन खेला । किंतु जो काम उसे करना था उसका निश्चय तो हो ही चुका था ।इसलिए शास्त्रीजी की चेतावनी बेकार साबित हुई। और इसमें मुझ जैसे की तूतीकी आवाज तो सुनता ही कौन ? मैने वाइसराय से मिलकर खूब विनय की, खानगी पत्र लिखे, खुली चिट्ठियां लिखीं, उनमें मैनें यह साफ-साफ बतलाया था कि सत्याग्रह के सिवाय मेरे पास दूसरा रास्ता नहीं है । किंतु सब बेकार गया । अभी बिल गजटमें प्रकाशित नहीं हुआ था । मेरा शरीर था तो निर्बल, किंतु मैंन लंबे सफर का खतरा मोल लिया । अभी ऊंची आवाज से बोलने की शक्ति नहीं आई थी । खड़े होकर बोलने की शक्ति जो तब से गई सो अबतक नहीं आई है । खड़े होकर बोलते ही थोड़ी देर में सारा शरीर कांपने लगता और छाती और पेट में घबराहट मालूम होने लगती है । किंतु मुझे ऐसा लगा कि मद्रास से आये हुए निमंत्रण को अवश्य स्वीकार करना चाहिए । दक्षिण प्रांत उस समय मुझे घरके ही समान लगते थे । दक्षिण अफ्रीका के संबंध के कारण