पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८१

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। ४६४ ।।स्क्ष्वि आत्म-कथा : भाग ५ मैं मानता आया हूं कि तामिल-तेलगू आदि दक्षिण प्रांतके लोगोंपर मेरा कुछ हक है, और आवतक ऐसा नहीं लगा है कि मैंने यह विचार करनेमें जरा भी भुल की है । आमंत्रण स्वर्गीय श्री कस्तूरीरंगा ऐयंगरकी ओरसे आया था । मद्रास जाते ही मुझे जान पड़ा कि इस आमंत्रणके पीछे श्री राजगोपालाचार्य थे । श्री राजगोपालाचार्यके साथ मेरा यह पहला परिचय माना जा सकता है ? पहली ही बार हम दोनोंने एक दूसरेको यहां देखा । सार्वजनिक काममें ज्यादा भाय लेनेके इरादेसे और श्री कस्तूरीरंगा ऐयंगर आदि मित्रोंकी मांगसे वह सेलम छोड़कर मद्रास वकालत करने वाले थे । । मुझे उन्हींके साथ टहरानेकी व्यवस्था की गई थी । मुझे दो-एक दिन बाद मालूम हुआ कि मै उन्हींके घर ठहराया गया हूं । वह् बंगला श्री कस्तूरीरंगा ऐयंगरका होनेके कारण मैंने यही मान लिया था कि मैं उन्हींका अतिथि हूं । महादेव देसाईने मेरी यह भूल सुधारी । राजगोपालाचार्य दूर-ही-दूर रहते थे । किंतु महादेवने उनसे भलीभांति परिचय कर लिया था । महादेवने मुझे चेताया, “ आपको श्री राजगोपालाचार्यसे परिचय कर लेना चाहिए । " मैंने परिचय किया । उनके साथ रोज ही लड़ाईके संगठनकी सलाह किया करता था । सभाओंके अलावा मुझे और कुछ सूझता ही नहीं था । रौलट- बिल अगर कानून बन जाय तो उसका सविनय भंग कैसे हो ? सविनय भंगका अवसर तो तभी मिल सकता था, जब सरकार देती । दूसरे किन कानूनोंका सविनय भंग हो सकता है ? उसकी मर्यादा क्या निश्चित हो ? ऐसी ही चर्चाएं होती थीं । श्री कस्तूरीरंगा ऐयंगरने नेताओंकी एक छोटी-सी सभा की । उसमें भी खूब चर्चा हुई । उसमें श्री विजयराघवाचार्य खूब हाथ बंटाते थे । उन्होंने यह सुझाया कि तफसीलसे हिदायतें लिखकर मुझे सत्याग्रहका एक शास्त्र लिख डालना चाहिए । पर मैने कहा कि यह काम मेरी शक्तिके बाहर है । यों सलाह-मशवरा हो रहा था इसी बीच खबर आई कि बिल कानून बनकर गजटमें प्रकाशित हो गया है। जिस दिन यह खबर मिली, उस रातको में विचार करता हुआ सो गया । भोरमें बड़े सवेरे उठ खड़ा हुआ । अभी अर्धनिद्रा होगी कि मुझै सप्नमै एक विचार सूझा । सएरे ही मैंने श्रि राजगोपालाचार्य को