पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८३

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४६६ ‘आत्म-कथा : भाग ५ श्रान चलती थी । छठी तारीख तक हड़तालकी मुद्दत बढ़ा दी जाने की खबर दिल्लीमें देरसे पहुंची थी । दिल्लीमें उस दिन जैसी हड़ताल हुई, वैसी पहले कभी न हुई थी । हिंदू और मुसलमान दोनों एक दिल होने लगे । श्रद्धानंदजी को जुमा मस्जिदमें निमंत्रण दिया गया था और वहां उन्हें भाषण करने दिया गया था । ये सब बातें सरकारी अफसर सहन नहीं कर सकते थे । जलूस स्टेशनकी ओर चला जा रहा था कि पुलिसने रोका और गोली चलाई । कितने ही आदमी जख्मी हुए, और कुछ खून हुए। दिल्लीमें दमन-नीति शुरू हुई। श्रद्धानंदजीने मुझे दिल्ली बुलाया । मेंने तार किया कि बंबईमें छठी तारीख मना कर मैं तुरंत दिल्ली रवाना होऊंगा । जैसा दिल्लीमें हुआ, वैसा ही लाहौरमें और अमृतसरमें भी हुआ था । अमृतसरसे डा०. सत्यपाल और किचलूके तार मुझे जरूरीमें वहां बुला रहे थे । उस समय इन दोनों भाइयोंको जरा भी नहीं पहचानता था । दिल्लीसे होकर जानेके निश्चयकी खबर मैंने उन्हें दी थी । छठीको बंबईमें सुबह हजारों आदमी चौपाटीमें स्नान करने गये और वहांसे ठाकुरद्वार जानेके लिए जलूस निकला । उसमें स्त्रियां और बच्चे भी थे । मुसलमान भी अच्छी तादादमें शामिल हुए थे । इस जलूसमेंसे हमें मुसलमान भाई एक मस्जिदमें ले गये । वहां श्रीमती सरोजिनी देवीसे तथा मुझसे भाषण कराये । यहां श्री विट्ठलदास जेराजाणीने स्वदेशीकी तथा हिंदु-मुसलमानऐक्यकी प्रतिज्ञा लिवानेके लिए सुझाया । मैंने ऐसी उतावलीमें प्रतिज्ञा लिवाने से इन्कार कर दिया । जितना हो रहा था उतनेसे ही संतोष माननेकी सलाह दी । प्रतिज्ञा लेनेके बाद नहीं टूट सकती । हमें अभी स्वदेशीका अर्थ भी समझना चाहिए । हिंदू-मुसलमान-ऐक्यकी जिम्मेदारी का खयाल रखना चाहिए वगैरा कहा और सुझाया कि जिन्हें प्रतिज्ञा लेनेकी इच्छा हो, वे कल सवेरे भले ही चौपाटीके मैदानमें आ जायं । । बंबईकी हड़ताल सोलहों. आना संपूर्ण थी । यहां कानूनके सविनय भंगकी तैयारी कर रक्खी थी । भंग हो सकने लायक दो-तीन वस्तुएं थीं । ये कानून ऐसे थे, जो रद्द होने लायक थे और इनको सब लोग सहज ही भंग कर सकते थे । इनमेंसे एकको ही चुननेका निश्चय हुआ