पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८५

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४६८ आत्म-कथा : भाग ५ हुआ, न दुःख ही हुआ; किंतु तभीसे जोशीले काम और धीमे रचनात्मक कामके भेदका और पहलेके प्रति लोगोंके पक्षपात तथा दूसरेके प्रति अरुचिका अनुभव मैं बराबर करता आया हूं । किंतु इस विषयके लिए एक अलग ही प्रकरण देना ठीक रहेगा । । सातकी रातको मैं दिल्ली और अमृतसरके लिए रवाना हुआ । आठको मथुरा पहुंचते ही कुछ भनक मिली कि शायद मुझे पकड़ लें । मथुराके बाद एक स्टेशनपर गाड़ी खड़ी थी । वहींपर मुझे आचार्य गिडवानी मिले । उन्होंने मुझे यह विश्वस्त खबर दी कि “आपको जरूर पकड़ेंगे और मेरी सेवाकी जरूरत हो तो मैं हाजिर हूं । ” मैंने उपकार माना और कहा कि जरूरत पड़नेपर आपसे सेवा लेना नहीं भूलूंगा । पलवल स्टेशन आनेके पहले ही पुलिस-अफसरने मेरे हाथमें एक हुक्म लाकर रक्खा । “ तुम्हारे पंजाबमें प्रवेश करनेसे अशांति बढ़नेका भय है, इसलिए तुम्हेंहुक्म दिया जाता है कि पंजाबकी सीमामें दाखिल मत होओ । ”हुक्मका आशय यह था । पुलिसने हुक्म देकर मुझे उतर जानेके लिए कहा । मैंने उतरनेसे इन्कार किया और कहा-- “ मैं अशांति बढ़ाने नहीं, किंतु आमंत्रण मिलनेसे अशांति घटानेके लिए जाना चाहता हूं । इसलिए मुझे खेद है कि म इस हुक्मको नहीं मान सकता ।” पलबल आया । महादेव देसाई मेरे साथ थे । उन्हें दिल्ली जाकर श्रद्धानंदजीको खबर देने और लोगोंको शांतिका संदेश देनेके लिए कहा । हुक्मका अनादर करनेसे जो सजा हो, उसे सहनेका मैंने निश्चय किया है तथा सजा होनेपर भी शांत रहनेमें ही हमारी जीत है, यह समझानेके लिए कहा । पलबल स्टेशनपर मुझे उतारकर पुलिसके हवाले किया गया । दिल्लीसे आनेवाली किसी ट्रेनके तीसरे दर्जेके डिब्बेमें मुझे बैठाया । साथमें पुलिसकी पार्टी बैठी । मथुरा पहुंचनेपर मुझे पुलिस-बैरकमें ले गये । यह कोई भी अफसर नहीं बता सका कि मेरा क्या होगा और मुझे कहां ले जाना है । सवेरे ४ बजे मुझे उठाया और बंबई ले जानेवाली एक मालगाड़ीमें ले गये । दोपहरको सवाई माधोपुरमें उतार दिया । वहां बंबईकी मेल ट्रेनमें लाहौरसे इंसपेक्टर बोरिंग आये मैं उनके हवाले किया गया । अब मुझे पहले दर्जेमें बैठाया गया । साथमें साहब