पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८६

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अध्याय ३१ : बहं सप्ताह !--१ ४६९ बैठे ! अबतक मैं मामूली कैदी था । अबसे जेंटिलमैन' कैदी गिना जाने लगा ! साहबने सर माइकेल श्रोडवायर के बखान शुरू किये । उन्होंने मुझसे कहा कि हमें तो आपके खिलाफ कोई शिकायत नहीं है; किंतु आपके पंजाब में जानेसे अशांतिका पूरा भय है ।” और इसलिए मुझसे अपने आप ही लौट जानेका और पंजाब की सरहद पार न करने का अनुरोध किया । मैंने उन्हें कह दिया कि मुझसे इस हुक्मका पालन नहीं हो सकेगा और मैं स्वेच्छासे लौट जानेको तैयार नहीं हूं । इसलिए साहबने लाचारीसे कानूनको काममें लाने की बात कही । मैंने पूछा--“पर यह भी कुछ कहोगे कि आखिर मेरा करना क्या चाहते हो ?” उसने जवाब दिया-- " मुझे कुछ मालूम नहीं है । मुझे कोई दूसरा हुक्म मिलेगा । अभी तो मैं आपको बंबई ले जाता हूं }” सूरत आया । वहांपर किसी दूसरे अफसरने मेरा जिम्मा लिया उसने रास्तेमें मुझे कहा, “आप स्वतंत्र हैं, किंतु आपके लिए मैं बंबईमें मरीनलाइन्स स्टेशनपर गाड़ी खड़ी कराऊंगा । कोलाबापर ज्यादा भीड़ होनेकी संभावना हैं ।” मैंने कहा--“ जैसी आपकी मरजी हो । ” वह खुश हुआ और मुझे धन्यवाद दिया । मरीनलाइंस में उतरा । वहां किसी परिचित सज्जनकी घोड़ागाड़ी देखी । बह मुझे रेवाशंकर जौहरी के घर पर छोड़ गई । रेवाशंकरभाई ने मुझे खबर दी--“आपके पकड़े जानेकी खबर सुनकर लोग उत्तेजित हो गये हैं । पायधुनी के पास हुल्लड़का भय है । वहां पुलिस और मजिस्ट्रेट पहुंच गये हैं । ” मेरे घरपर पहुंचते ही उमर सुबानी और अनसूया बहन मोटर लेकर आये और मुझसे पायधुनी चलने की बात कही- “ लोग अधीर हो गये हैं और उत्तेजित हो रहे हैं । हम किसीके किये वे शांत नहीं रह सकते । आपको देख लेनेपर ही शांत होंगे ।” में मोटरमें बैठ गया । पायधुनी पहुंचते ही रास्ते में बहुत बड़ी भीड़ दीखी । मुझे देखकर लोग हर्षोंन्मत्त हो गये । अब खासा जलूस बन गया । ‘वंदे मातरम्', 'अल्लाहो अकबर'की आवाज से आसमान फटने लगा । पायधुनी-पर मैंने घुड़सवार देखे । ऊपरसे ईटोंकी वर्षा होती थी । मैं लोगों से शांत होने के लिए हाथ जोड़कर प्रार्थना करता था । किंतु ऐसा जान पड़ा कि हम भी इस ईटोंकी वर्षा से न बच सकेंगे ।