पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४८७

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आत्म-कथा : ग ५ | अब्दुल रहमान गलीमेंसे क्रॉफर्ड मार्केटकी ओर जाते हुए जलूसको रोकनेके लिए घुड़सवारोंकी टुकड़ी सामने आ खड़ी हुई । जलूसको फोर्टकी ओर जाने से रोकने के लिए वे महाप्रयत्न कर रहे थे। लोग समाते न थे । लोगोंने पुलिसक लाइनको चीरकर आगे बढ़ना शुरू किया। हालत ऐसी न थी कि मेरी आवाज सुनाई पड़े। इसपर घुड़सवारोंकी टुकड़ीके अफसरने भीड़को तितर-बितर करनेका हुक्म दिया और इस टुकड़ीने भाले तानकर एकदम धोड़े छोड़ दिये । मुझे भय था कि इनमें से कोई भाला हममें से भी किसीका काम तमाम कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं; किंतु इस भयके लिए कोई आधार नहीं था । बंगलसे होकर सभी भाले रेलगाड़ीकी चालसे बढ़े चले जाते थे। लोगोंके झुंड टूट गये। भगदड़ मच गई । कई कुचल गये, कई घायल हुए ! घुड़सवारोको निकलनेके लिए रास्ता न था। लोगोंके इधर-उधर हुटनेको जगह न थी । वे अगर पीछे भी फिरना चाहें तो उधर भी हजारोंकी जबरदस्त भीड़ थी। सारा दृश्य भयंकर लगा। घुड़सवार और लोग दोनों ही उन्मत्त जैसे मालूम हुए। घुड़सवार न तो कुछ देखते और न देख ही सकते थे । वे तो अांखें मूंदकर सरपट घोड़े दौड़ा रहे थे। जितने क्षण इस हजारोंके झुडको चीरने में लगे, उतनेतक तो मैंने देखा कि वे अंधाधुंध हो रहे थे। लोगोंको यों बिखेरकर आये जानेसे रोक दिया। हमारी मोटरको आगे जाने दिया। मैंने कमिश्नरके दफ्तरके आगे मोटर रुकवाई और मैं उनके पास पुलिसके व्यवहारके लिए शिकायत करने उतरा । वह सप्ताह !---२ मैं कमिश्नर ग्रिफिथ साहबके दफ्तरमें गया। उनकी सीढ़ी के पास जाते ही मैंने देखा कि हथियारबंद सोल्जर तैयार बैठे थे, मानो किसी लड़ाईपर जाने के लिए ही तैयार हो रहे हों ! बरामदेमें भी हलचल मच रही थी। मैं खबर भेजकर दफ्तरमें घुसा तो कमिश्नरके पास मि० बोरिंगको बैठे हुए देखा ।