पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४९१

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४३४ आत्म-कथा : भाग ५ ‘हिमालय-जैसी भूल अहमदाबादकी सभाके बाद मैं तुरंत नड़ियाद गया है ‘हिमालय- जैसी भूल' के नामसे जो शब्द-प्रयोग प्रचलित हो गया है, उसका प्रयोग मैंने पहले-पहल नड़ियादमें किया था। अहमदाबादमें ही मुझे अपनी भूल जान पड़ने लगी थी; किंतु नड़ियादमें वहांकी स्थितिका विचार करते हुए खेड़ा जिलेके बहुतसे आदमियोंके गिरफ्तार होनेकी बात सुनते हुए, जिस सभामें मैं इन घटनाओं- पर भाषण कर रहा था, वहींपर मुझे एकाएक खयाल हुआ कि खेड़ा जिलेके तथा ऐसे ही दूसरे लोगोंको सविनय भंग करनेके लिए निमंत्रण देने में मैंने उतावलो करनेकी भूल की थी, और वह भूल मुझे हिमालय-जैसी बड़ी जान पड़ी। मैंने इसे कबूल किया, इसलिए मेरी खूब ही हंसी हुई। तो भी मुझे यह कबूल करनेके लिए पश्चात्ताप नहीं हुआ है। मैंने यह हमेशा माना है कि जब हम दूसरेके गज-बराबर दोषको रज-समान देखें और अपने राई-जैसे जान पड़नेवाले दोषको पर्वत जैसा देखना सीखेंगे तभी हम अपने और दुसरेके दोषोंका ठीक-ठीक हिसाब लगा सकेंगे । मैंने यह भी माना है कि सत्याग्रहीं बनने के इच्छुक- को तो इस सामान्य नियमका पालन बहुत ही सूक्ष्मतासे करना चाहिए ।

  • अब हम यह देखें कि वह हिमालय-जैसी दिखाई पड़नेवाली भूल थी

क्या ? कानूनका सविनय भंग उन्हीं लोगोंसे हो सकता है, जिन्होंने कानूनको विनय-पूर्वक स्वेच्छा से मान लिया हो---उसका पालन किया हो । बहुतांदामें हम कानूनके भंगसे होनेवाली सजाके डरसे उसका पालन करते हैं। इसके अलावा यह बात विशेषकर उन कानूनोंपर लागू पड़ती है, जिनमें नीति-अनीतिका सवाल नहीं होता । कानून हो, या न हो, सज्जन माने जानेवाले लोग एकाएक चोरी नहीं करेंगे; मगर तो भी रातको बाइसिकलकी बत्ती जलानेके नियममेंसे छटक जानेमें भले आदमीको भी क्षोभ नहीं होगा । और ऐसे नियम पालनेकी कोई सलाह भी दे, तो भले लोग भी उसका पालन करनेको झट तैयार नहीं होंगे । किंतु जब कि यह कानून बन जाता है, उसका भंग करनेसे जुमानेका भय रहता है,