पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४९६

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अध्याय ३५: पंजाब ४७६ यह कत्ल न हुआ होता और न फौजी कानून ही जारी हो पाता। कुछ लोगोंने तो धमकियां भी दीं कि यदि अब अपने पंजाबमें पैर रक्खा तो आपका खून कर डाला जायगा । पर मैं तो मान रहा था कि मैंने जो-कुछ किया है वह इतना उचित और टीक था कि उसमें समझदार आदमियोंको गलतफहमी होनेकी संभावना ही न थी। मैं पंजाब जानेके लिए अधीर हो रहा था। इससे पहले मैंने पंजाब देखा नहीं था; पर अपनी आंखों जो-कुछ देख सकें, देखनेकी तीव्र इच्छा थी। और मुझे बुलानेवाले डा० सत्यपाल, किचलू, रामभजदत्त चौधरी आदिसे मिलनेकी अभिलाषा भी हो रही थी। वे थे तो जेलमें, पर मुझे पूरा विश्वास था कि उन्हें सरकार अधिक दिनों तक जेल में नहीं रख सकेगी। जब-जब मैं बंबई जात, तब-तब कितने ही पंजाबी भाई मिलने आ जाते थे। उन्हें मैं प्रोत्साहन देता और वे प्रसन्न होकर उसे ले जाते । उस समय मेरा अात्म-विश्वास बहुत था । पर मेरे पंजाब जानेका दिन दूर-ही-दूर होता जाता था । वाइसराय, भी यह कहकर उसे दूर ढकेलते जाते थे कि अभी समय नहीं है । . . . इसी बीच हंटर-कमिटी आई । वह फौजी कानूनके दौरेमें पंजाबके अधिकारियों द्वारा किये कृत्योंकी जांच करनेके लिए नियुक्त हुई थी। दीनबंधु एंड्रूज वहां पहुंच गये थे। उनकी चिट्ठियोंमें वहांका हृदयद्रावक वर्णन होता था। उनके पत्रोंसे यह ध्वनि निकलती थी कि अखबारोमें जो कुछ बातें प्रकाशित हो चुकी हैं उनसे भी अधिक जुल्म फौजी कानूनका था। वह भ पंजाब आनेका आग्रह कर रहे थे। दूसरी ओर मालवीयजीके भी तार आ रहे थे कि आपको पंजाब अवश्य पहुंच जाना चाहिए। तब मैंने फिर वाइसरायको तार दिया । उनका जवाव आया कि फलां तारीखको आप जा सकते हैं। अब तारीख ठीक-ठीक याद नहीं पड़ती, पर बहुत करके वह १७ अक्तूबर थी । लाहौर पहुंचने पर मैंने जो दृश्य देखा वह कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्टेशनपर मुझे लिवानेके लिए ऐसी भीड़ इकट्ठी हुई थी, मानो किसी- बहुत दिनके बिछड़े प्रिय-जनसे मिलनेके लिए उसके सगे-संबंधी आये हों। लोग हर्षसे पागल हो रहे थे। पंडित रामभजदत्त चौधरीके यहां मैं ठहराया गया था। श्रीमती सरलादेवी चौधरानी से मेरा पहलेका परिचय था । मेरे अतिथ्यका भार उनपर