पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/४९७

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४६० आत्म-कथा : भाग ५ आ पड़ा था। आतिथ्यका 'भार' शब्दको प्रयोग मैं जान-बूझ कर कर रहा हैं; क्योंकि आजकी तरह तब भी मैं जहां ठहरता, वह घर एक धर्मशाला ही हो जाता था ।। | पंजाबमें मैंने देखा कि वहांके पंजाबी नेताओंके जेल में होनेके कारण पंडित मालवीयजी, पंडित मोतीलालजी और स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानंदजीने मुख्य नेताअोंका स्थान ग्रहण कर लिया था। मालवीयजी और श्रद्धानंदजीके संपर्क में तो में अच्छी तरह आ चुका था; पर पंडित मोतीलालजीके निकट संपर्कमें तो में लाहौरमें ही आया । इन तथा दुसरे स्थानिक नेताअोंने, जिन्हें जेल जानेका गौरव प्राप्त नहीं हुआ था, तुरंत मुझे अपना बना लिया। कहीं मुझे यह ने मालूम हुआ कि मैं कोई अजनबी हूँ ।। | हम सब लोगोंने एकमत होकर हंटर-कमिटी के सामने गवाही न देनेका निश्चय किया। इसके कारण उसी समय प्रकट कर दिये थे । अतएव यहां इनका उल्लेख छोड़ देता हूं। वे कारण सीधे थे और आज भी मेरा यही मत है। कि कमिटीका, हमने जो बहिष्कार किया वह उचित ही था । पर यदि हंटर-कमिटीका बहिष्कार किया जाय तो फिर लोगोंकी तरफसे अर्थात् कांग्रेसकी अोरसे कोई जांच-कमिटी नियुक्त होनी चाहिए, इस निश्चयपर हम लोग पहुंचे। पंडित मोतीलाल नेहरू, स्व० चित्तरंजन दास, श्री अब्बास तैयबजी, श्री जयकर और मैं इतनोंको पंडित मालवीयजीने उसका सदस्य बनाया। हम जांचके लिए अलग-अलग स्थानमें बंट गये । इस कमिटीकी व्यवस्थाका बोझ सहज ही मुझपर अा पड़ा था और मेरे हिस्सेमें अधिक-से-अधिक गांवोंकी जांचका काम आजानेके कारण मुझे पंजावको और पंजाबके देहातको देखने का अलभ्य लाभ मिला ।। | इस जांचके दिनोंमें पंजाबकी स्त्रियां तो मुझे ऐसी मालूम हुई, मानो मैं उन्हें युगोंसे पहचानता होऊ । मैं जहां जाता वहां झुंड-की-झुंड स्त्रियां आ जातीं और अपने कते सूतका ढेर मेरे सामने कर देतीं । इस जांचके साथ ही मैं अना- यास इस बातको भी देख सका कि पंजाब खादीका एक महान् क्षेत्र हो सकता है । ". ज्यों-ज्यों में लोगोंपर हुए जुल्मोंकी जांच अधिकाधिक गहराईसे करने । लगा त्यों-त्यों मेरे अनुमानसे परे सरकारी अराजकता, हाकिमोंकी नादिरशाही