पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/५१७

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जा-कथा : भाग ५ रेलमें तैयार किया। इस समयतक मेरे मसविदोंमें शांतिमय शब्द प्रायः नहीं अाता था। मैं अपने भाषणोंमें उसका उपयोग करता था । लेकिन जहां अकेले मुसलमान भाइयोंकी सभा होती वहां शांतिमय शब्दसे मैं जो-कुछ समझाना चाहता, समझा नहीं सकता था; इसलिए मैंने मौलाना अबुलकलाम आजादसे इसके लिए दूसरे शब्द पूछे। उन्होंने ‘बागमन' शब्द बतलाया और असहयोगके लिए ‘तकें भुवालात' शब्द सुझाया । इस तरह जब गुजरातीमें, हिंदीमें, हिंदुस्तानीमें असहयोगकी भाषा मेरे दिमागमें तैयार हो रही थी। उसी समय, जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं, कांग्रेसके लिए एक प्रस्ताव तैयार करनेका काम मेरे जिम्मे आया । उस प्रस्तावमें ‘शांतिमय' शब्द नहीं आ पाया था। प्रस्ताव तैयार कर चुकने पर ट्रेन में ही मैंने उसे मौलाना शौकतअलीके हवाले कर दिया था। रातमें मुझे खयाल आया कि खास शब्द 'शांतिमय' तो प्रस्तावके मसविदेमॅसे छूट गया है। मैंने महादेवको उसी समय जल्दी से भेजा और कहलवाया कि छापनेके पहले उसमें शांतिमयू शब्द भी जोड़ दिया जाय । मुझे याद आ रहा है कि इस शब्दके जुडेनेके पहले ही प्रस्ताव छप चुका था । उस रातको विषय-समिति की बैठक थी, इसलिए बादमें मुझे मसविदे में शांतिमय' शब्द जोड़ना पड़ा। साथ ही मैंने यह भी महसूस किया कि अगर मैंने पहले से ही प्रस्ताव तैयार न कर लिया होता तो बड़ी कठिनाई होती। । तिसपर भी मेरी हालत त दयाजनक ही थी। मुझे इस बातकर प्रता भी नहीं था कि कौन तो मेरे प्रस्तावको पसंद करेंगे और कौन उसके विरोधमें वोलेंगे । मुझे इस बातका भी विलकुल पता न था कि लालजीका झुकाव किस तरफ हैं। कलकत्तैमें पुराने अनुभवी योद्धागण एकत्र हुए थे। विदुषी एती बेसेंटे, पंडित मालवीयजी, विजयराघवाचार्य, पंडित मोतीलालजी, देशबंधु वगैरा नेता उनमें मख्य थे । मेरे प्रस्तावमें खिलाफत' और पंजाबके अन्यायों को लेकर हु असंयोग करने की बात कही गई थी । श्री विजयराघवाचार्यको इतने से संतोष न हुआ । उनका कहना था, “अगर अंसहयोग करना है तो फिर किसी खास अन्यायको लेकर ही क्यों किया जाय ? स्वराज्यको अभाव तो बड़े-से-बड़ा अन्याय है, इसे लेकर