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पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/५९

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अध्याय १२ : जाति-बहिष्कार


करनेका बीड़ा उठाया।

पर माताजी क्योंकर मानती? उन्होंने विलायतके जीवनके संबंधमें पूछ-ताछ शुरू की। किसीने कहा, नवयुवक विलायत जाकर बिगड़ जाते हैं। कोई कहता था, वे मांस खाने लग जाते हैं। किसीने कहा, वहां शराब पिये बिना नहीं चलता। माताजीने यह सब मुझसे कहा। मैंने समझाया कि तुम मुझपर विश्वास रक्खो, मैं विश्वासघात न करूंगा। मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैं इनमें तीनों बातोंसे बचूंगा। और अगर ऐसी जोखिमकी ही बात होती तो जोशीजी क्यों जानेकी सलाह देते?

माताजी बोलीं-"मुझे तेरा विश्वास है। पर दूर देशमें तेरा कैसे क्या होगा? मेरी तो अकल काम नहीं करती। मैं बेचरजी स्वामीसे पूछूंगी।" बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियेसे जैन साधु हुए थे। जोशीजी की तरह हमारे सलाहकार भी थे। उन्होंने मेरी मदद की। उन्होंने कहा कि मैं इससे तीनों बातोंकी प्रतिज्ञा लिवा लूंगा। फिर जाने देनेमें कोई हर्ज नहीं। तदनुसार मैंने मांस, मदिरा और स्त्री-संगसे दूर रहनेकी प्रतिज्ञा ली। तब माताजीने इजाजत दे दी।

मेरे विलायत जानेके उपलक्ष्यमें हाईस्कूलमें विद्यार्थियोंका सम्मेलन हुआ। राजकोटका एक युवक विलायत जा रहा है, इसपर सबको आश्चर्य ही हो रहा था। अपनी विदाईके जवाबमें मैं कुछ लिखकर ले गया था। पर मैं उसे मुश्किलसे पढ़ सका। सिर घूम रहा था, बदन कांप रहा था, इतना मुझे याद है।

बड़े-बूढ़ोंके आशीर्वाद प्राप्तकर मैं बंबई रवाना हुआ। बंबईकी मेरी यह पहली यात्रा थी, इसलिए बड़े भाई साथ आये।

परंतु अच्छे काममें सैकड़ों विघ्न आते हैं। बंबईका बंदर छूटना आसान न था।


१२

जाति-बहिष्कार

माताजीकी आज्ञा और आशीर्वाद प्राप्त कर, कुछ महीनेका बच्चा पत्नीके साथ छोड़कर, मैं उमंग और उत्कंठाके साथ बंबई पहुंचा। पहुंच तो गया, पर