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आत्म-कथा : भाग १


साबित हुए। उनमें इस पद्धतिका समर्थन किया गया था कि दवा देनेके बजाय केवल भोजनमें फेरफार करनेसे रोगी कैसे अच्छे हो जाते हैं। डाक्टर एलिन्सन खुद अन्नाहारी थे और रोगियोंको केवल अन्नाहार ही बताते। इन तमाम पुस्तकोंके पठनका यह परिणाम हुआ कि मेरी जिंदगीमें भोजनके प्रयोगोंने महत्त्वका स्थान प्राप्त कर लिया। शुरूमें इन प्रयोगोंमें आरोग्यकी दृष्टिकी प्रधानता थी। पीछे चलकर धार्मिक दृष्टि सर्वोपरि हो गई।

अबतक मेरे उन मित्रकी चिंता मेरी तरफसे दूर न हुई थी। प्रेमके वशवर्ती होकर वह यह मान बैठे थे कि यदि मैं मांसाहार न करूंगा तो कमजोर हो जाऊंगा, यही नहीं बल्कि बुद्धू बना रह जाऊंगा; क्योंकि अंग्रेज-समाजमें मैं मिल-जुल न सकूंगा। उन्हें मेरे अन्नाहार-संबंधी पुस्तकोंके पढ़नेकी खबर थी। उन्हें यह भय हुआ कि ऐसी पुस्तकोंको पढ़नेसे मेरा दिमाग खराब हो जायगा, प्रयोगोंमें मेरी जिन्दगी यों ही बरबाद हो जायगी, जो मुझे करना है वह एक तरफ रह जायगा और मैं सनकी बनकर बैठ जाऊंगा। इस कारण उन्होंने मुझे सुधारने का आखिरी प्रयत्न किया। मुझे एक नाटकमें चलने को बुलाया। वहां जानेके पहले उनके साथ हॉबर्न भोजनालयमें भोजन करना था। वह भोजनालय क्या, मेरे लिए खासा एक महल था। विक्टोरिया होटलको छोड़नेके बाद ऐसे भोजनालयमें जानेका यह पहला अनुभव था। विक्टोरिया होटलका अनुभव तो यों ही था, क्योंकि उस समय तो मैं कर्तव्य-मूढ़ था। अस्तु, सैकड़ों लोगोंके बीच हम दो मित्रोंने एक मेज़पर आसन जमाया। मित्रने पहला खाना मंगाया। वह 'सूप' या शोरवा होता हैं। मैं दुविधामें पड़ा। मित्रसे क्या पूछता? मैंने परोसने वालेको नजदीक बुलाया।

मित्र समझ गये। चिढ़कर बोले- "क्या मामला है?"

मैंने धीमेसे संकोचके साथ कहा- "मैं जानना चाहता हूं कि इसमें मांस है या नहीं?"

"ऐसा जंगलीपन इस भोजनालयमें नहीं चल सकता। यदि तुमको अब भी यह चख-चख करनी हो तो बाहर जाकर किसी ऐरे-गैरे भोजनालयमें खालो और वहीं बाहर मेरी राह देखो।"

मुझे उस प्रस्तावसे बड़ी खुशी हुई; और मैं तुरंत दूसरे भोजनालयकी