पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७३
अध्याय २० : धार्मिक परिचय


इसी खयालसे कि यह कह सकूं कि 'हां बाइबिल पढ़ ली' मैंने बे-मन और बे-समझे आगेके प्रकरणोंको बड़े कष्टसे पढ़ा। 'नंबर्स' नामक प्रकरण पढ़कर तो उलटी अरुचि हो गई। पर जब 'न्यू टेस्टामेंट' तक पहुंचा तब तो कुछ और ही असर हुआ। हजरत ईसाके गिरि-प्रवचनका असर बहुत ही अच्छा हुआ। वह तो सीधा ही हृदयमें पैठ गया। बुद्धिने गीताजीके साथ उसकी तुलना की। 'जो तेरा कुरता मांगे उसे तू अंगरखा दे डाल। जो तेरे दाहिने गालपर थप्पड़ मारे उसके आगे बायां गाल करदे। यह पढ़कर मुझे अपार आनंद हुआ। श्यामल भट्टका वह छप्पय याद आया। मेरे युवक मनने गीता, एर्नाल्ड-कृत बुद्ध-चरित्र और ईसाके वचनोंका एकीकरण किया। 'त्यागमें धर्म है' यह बात दिलको जंच गई।

इन पुस्तकोंके पठनसे दूसरे धर्माचार्योंके जीवन-चरित्र पढ़नेकी इच्छा हुई। किसी मित्रने सुझाया—कार्लाईलकी 'विभूतियां और विभूति-पूजा' पढ़ो। उसमें मैंने हजरत मुहम्मद-विषयक अंश पढ़ा और मुझे उनकी महत्ता, वीरता और उनकी तपश्चर्याका परिचय मिला।

बस, इतने धार्मिक परिचयसे आगे मैं न बढ़ सका; क्योंकि परीक्षा संबंधी पुस्तकोंके अलावा दूसरी पुस्तकें पढ़नेकी फुरसत न निकाल सका। मगर मेरे दिलमें यह भाव जम गया कि मुझे भी धर्म-पुस्तकें अवश्य पढ़नी चाहिए और समस्त मुख्य-मुख्य धर्मोंको आवश्यक परिचय प्राप्त कर लेना चाहिए।

भला यह कैसे संभव था कि विलायतमें रहकर नास्तिकताके संबंधमें कुछ न जानता? उन दिनों ब्रेडलाका नाम समस्त भारतवासी जानते थे। ब्रेडला नास्तिक माने जाते थे। इस कारण नास्तिकवादके विषयमें भी एक पुस्तक पढ़ी। नाम इस समय याद नहीं पड़ता। मेरे मनपर उसकी कुछ छाप न पड़ी। क्योंकि नास्तिकतारूपी सहाराका रेगिस्तान अब मैं पार कर चुका था। मिसेज बेसेंटकी कीर्ति तो उस समय भी बहुत फैली हुई थी। वह नास्तिकसे आस्तिक बनी थीं, इस बातने भी मुझे नास्तिकताकी ओरसे उदासीन बनाया। बेसेंटकी 'मैं थियोसोफिस्ट कैसे हुई?' पुस्तिका मै पढ़ चुका था। इन्हीं दिनों ब्रेडलाका देहांत हुआ। उनकी अंत्येष्टिक्रिया वोकिंगमें हुई थी। मैं भी वहां गया था। मेरा खयाल है कि शायद ही कोई ऐसा भारतवासी होगा, जो वहां न गया हो।