पृष्ठ:Satya Ke Prayog - Mahatma Gandhi.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
७४
आत्म-कथा : भाग १


कितने ही पादरी भी उनके सम्मानमें उपस्थित हुए थे। लौटते समय हम सब एक जगह ट्रेनकी राह देख रहे थे। वहां भीड़मेंसे एक पहलवान नास्तिकतावादीने एक पादरीसे जिरह करना शुरू की-

"क्यों जी, आप कहते हैं न, कि ईश्वर है?"

उस भले पादरीने धीमी आवाजमें जवाब दिया-"हाँ भाई, कहता तो हूं।"

पहलवान हंसा और इस भावसे कि मानो पादरीको पराजित कर दिया हो, बोला-"अच्छा, आप यह तो मानते हैं न, कि पृथ्वीकी परिधि २८००० मील है?"

"हां, अवश्य।"

"तब बताओ तो देखें, ईश्वरका कद कितना बड़ा है और वह कहां रहता होगा?"

"यदि हम समझें तो वह हम दोनोंके हृदयमें वास करता है।"

चारों ओर खड़े हुए हम लोगोंकी ओर वह कहकर उसने विजयीकी तरह देखकर कहा-"किसी बच्चेको फुसलाइए किसी बच्चेको।"

पादरी ने नम्रता के साथ मौन धारण कर लिया।

इस संवादने नास्तिकवादकी ओरसे मेरा मन और भी हटा दिया।

२१

'निर्बलके बल राम'

इस तरह मुझे धर्म-शास्त्रोंका तथा दुनियाके धर्मोंका कुछ परिचय तो मिला, लेकिन इतना ज्ञान मनुष्यको बचानेके लिए काफ़ी नहीं होता। आपत्तिके समय जो वस्तु मनुष्यको बचाती है, उसका उसे उस समय न तो भान ही रहता है, न ज्ञान ही। नास्तिक जब बच जाता है, तो कहने लगता है कि मैं तो अचानक बच गया। आस्तिक ऐसे समय कहेगा कि मुझे ईश्वरने बचाया। परिणामके बाद वह ऐसा अनुमान कर लेता है कि धर्मोंके अध्ययनसे, ईश्वर हृदयमें प्रकट होता है। इस प्रकारका अनुमान करनेका उसे अधिकार है। लेकिन बचते समय वह