पृष्ठ:Shri Chandravali - Bharatendu Harschandra - 1933.pdf/२३

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श्रीचन्दावली चन्द्ना- प्यारे! देखो ये हँसती है-तो हँसें,तुम आओ, कहॉं बन मे छिपे हो! तुम मुँह दिखलाओ, इनको हँसने दो। घारन दीजिए घीर हिए कुलकानि को आजु बिगारन दीजिए। मारन दीजिए लाज सबै 'हरिचन्द' कलंक पसारन दीजिए॥ चार चबाइन कों चहुँ ओर साें सोर मचाइ पुकारन दीजिए॥

क्योकि- ये दुखियाँ सदा रोयो करै बिघना इनको कबहुँ न दियो सुख। झुठही चार चवाइन के डर देख्यो कियो उनही को लिये रुख॥ छॉड़यौ सबै 'हरिचन्द' तऊ न गयो जिय साें देखिबे को मुख॥ प्रान बचैं केहि भाँतिन साें तरसै जब दुर साें देखिबे को मुख॥

                 (रोती है)

बन-(आँसु अपने आँचल से पोछकर) तौ ये यहॉ नॉंय रहिबे की,सखी! एक घडी धीरज घर जब हम चली जायँ तब जो चाहियो सो करियो। चन्द्रा-अरी सखियो मोहि छमा करियो,अरी देखौ तो तुम मेरे पास आई और हमने तुमारो कछू सिस्टाचार न कियो।(नेत्रो मे आँसु भरकर हाथ जोड़- कर)सखी! मोहि छमा करियो और जानियो कि जहॉं मेरी बहुत सखी है उनमैं एक एसी कुलचिछिनि हू है।

सन्धाया और वर्षा-नही नही सखी,तू तो मेरी प्रानन साें हू प्यारी है,सखी हम सच कहै तेरी सी सॉंची प्रेमिन एक हू न देखी, ऐसे तो सबी प्रेम करैं पर तू सखी धन्य है।

चन्द्रा- हॉं सखी,और ( सन्धाया को दिखाकर) या सखी को नाम का है? बन- याको नाम सन्धाया है। चन्द्रा-(घबराकर) सन्धायावली आई? क्या कुछ सँदेसा लाई? कहो,कहो प्राणप्यारे ने क्या कहा? सखी बडी देर लगाई?(कुछ ठहर कर)सन्धाया हुई? सन्धाया हुई? तो वह बन से आते होगे।सखियो,चलो झराेखों मे बैठैं,यहॉं क्यों बैठी हौ?

     (नेपथ्य मे चन्द्रोदय होता है;चन्द्रमा को देखकर)

अरे अरे वह देखो आया (उँगली से दिखाकर)

   देख सखी देख अनमेख ऐसो भेख यह,
        जाहि पेख तेज रबिहू को  मंद है गयो।