पृष्ठ:Shri Chandravali - Bharatendu Harschandra - 1933.pdf/३०

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तीसरा अंक

                      स्थान---तालाब के पास एक बगीचा
                   (समय तीसरा पहर, गहिरे बादल छाए हुए)
             (झूला पड़ा है, कुछ सखी झुलती, कुछ इधर-उधर फिरती हैं)

(चन्द्रावली, माधवी, काममंजरी, विलासिनी इत्यादि एक स्थान पर बैठी हैं, च्रंद्रकॉता, वल्लभा, श्यामला, भामा झुले पर हैं, कामिनी और माधुरी हाथ में हाथ दिए घुमती है।)

कामिनी--- सखी, देख बरसात भी अब की किस घूमघाम से आई है मानो काम-देव ने अबलाओं को निर्बल जानकर इनके जीतने को अपनी सेना भिजवाई है। धूम से चारों ओर घूम-घूमकर बादल परे के परे जमाए बगपंगति का निशान उड़ाए लपलपाती नगी तलवार-सी बिजली चमकाते गरज-गरज कर डराते बान के समान पानी बरखा रहे है और इन दुष्टों का जी बढ़ाने को मोर करखा-सा कुछ अलग पुकार-पुकार गा रहा है। कुल की मरजाद ही पर इन निगोडों की चढ़ाई है। मनोरथों से कलेजा उमगा आता है और काम की उमंग जो अंग अंग में भरी हैं उनके निकले बिना जी तिलमिलाता है। ऐसे बादलों को देखकर कौन लाज की चद्दर रख सकती है और कैसे पतिव्रत पाल सकती है।

माधुरी--- विशेष् कर वह जो आप कामिनी हो। (हँसती है)

कामिनी---चल तुझे हँसने की ही पड़ी है। देख, भूमि चारों ओर हरी-हरी हो रही है। नदी-नाले बावली-तालाब सब भर गए। पच्छी लोग पर समेटे पत्तों की आड़ में चुप-चाप सकपके से होकर बैठे हैं। बीरबहूटी और जुगनूँ पारी-पारी रात और दिन को इधर-उधर बहुत दिखाई पड़ते हैं। नदियों के करारे धमाधम टूटकर गिरते हैं। सर्प निकल-निकल कर अशरण से इधर-उधर भागे फिरते हैं। मार्ग बंद हो रहे हैं। परदेसी जो जिस नगर में हैं वही पडे-पडे पछता रहे हैं, आगे बढ़ नहीं सकते। वियोगियों को तो मानों छोटा प्रलय काल ही आया है।

माधुरी--- छोटा क्यों बड़ा प्रलयकाल आया है। पानी चारों ओर से उमड़ ही रहा है। लाज के बडे-बडे जहाज गारद हो चुके, भया फिर वियोगियों के हिसाब से तो डूबा ही है, तो प्रलय ही ठहरा।