पृष्ठ:Shri Chandravali - Bharatendu Harschandra - 1933.pdf/३३

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श्रीचन्द्रावली

                   ऊनरी धटा मै देखि दूनरी लगी है आहा
                               कैसी आजु चूनरी फबी है मुख गौरे पै॥

चन्द्रा॰--- सखियो, देखो कैसो अन्धेर और गजब है कि या रुत मैँ सब अपने मनोरथ पूरो करैं और मेरी यह दुरगत होय! भलो काहुवै तो दया आवती। (आँखो में आँसू भर लेती है)

माधवी--- सभी, तू क्यो उदास होय है। हम सब कहा करैं, हम तो आज्ञा-कारिणी ठहरी, हमारो का अखत्यार है तऊ हममैं सों तो कोऊू कछू तोहि नायँ कहै।

का॰ म॰--- भलो सखी, हम याहि कहा कहैंगी! याहू तो हमारी छोटी स्वामिनी ठहरी।

विलासिनी--- हाॅ सखी! हमारी तो दोऊस्वामिनी हैं। सखी! बात यह है कै खराबी तो हम लोगन की है, ये दोऊ फेर एक की एक होयँगी। लाठी मारवे सों पानी थोरों हूँ जुदा होयगो, पर अभी जो सुन पावैँ कि ढिमकी सखी ने चन्द्रावलियै अकेलि छोड़ि दीनी तो फेर देखौ तमासा।

माधवी--- हम्बै बीर। और फेर कामहू तौ हमी सब बिगारै। अब देखि कौन नै स्वामिनी सोँ चुगली खाई। हमारेई तुमारे मे सों वहुू है। सखी चन्द्रावलियै जो दुःख देयगी वह आप दुःख पावैगी।

चन्द्रा॰--- (आप ही आप) हाय! प्यारे, फिर यह दशा होती हैम और तुम तनिक नहीं ध्यान देते। प्यारे, फिर यह शरीर कहाँ और हम-तुम कहाँ? प्यारे, यह सँजोग हमको तो अब की ही बना है, फिर यह बातें दुर्लभ हो जायेंगी। हाय नाथ! मैं अपने इन मनोरथों को किसको सुनाऊँ और अपनी उमंगें कैसे निकालूँ। प्यारे, रात छोठी है और स्वाँग बहुत है। जीना थोड़ा और उत्साह बढ़ा। हाय! मुझ-सी मोह में डूबी को कही ठिकाना नहीं। रात-दीन रोते ही बीतते है। कोई बात पूछनेवाला नहीं, क्योंकि संसार में जी कोई नहीं देखता, सब ऊपर ही की बात देखते हैं। हाय! मैं तो अपने-पराए सबसे बुरी बनकर बेकाम हो गई। सबको छोड़कर तुम्हारा आसरा पकड़ा था सो तुमने यह गती की। हाय! मैं किसकी होके रहूँ, मैं किसका मूँह देखकर जिऊँ। प्यारे, मेरे पीछे कोई ऐसा चाहने वाला नहीं मिलेगा। प्यारे,फिर दीया मेकर मुझको खोजोगे। प्यारे,तुम्हारे निर्दयीपन की भी कहानी चलेगी। हमारा तो कपोत-व्रत है। हाय स्नेह मगाकर दगा देने पर भी सुजान कहलाते हो। बकरा जान से तो गया, पर खानेवाले को स्वाद न मिला!