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श्रीचन्द्रावली

विला॰--- सखी, हमारे तो प्रान ताईं यापैं निछावर हैं पर जो कछू उपाय सूझै।

चन्द्रा॰--- (रोकर) सखी, एक उपाय सूझा है तुम मानो।

माधवी--- सखी, क्यों न मानैगी तू कहै क्यौं नही।

चन्द्रा॰--- सखी, मुझे यहाँ अकेली छोड़ जाओ।

माधवी--- तो तू अकेली यहाँ का करेगी?

चन्द्रा॰--- जो मेरी इच्छा होगी।

माधवी--- भलो तेरी इच्छा का होयगी हमहूँ सुनैं?

चन्द्रा॰--- सखी, वह वह उपाय कहा नहीं जाता।

माधवी--- तौ का अपनो प्रान देगी। सखी, हम ऐसी भोरी नहीं है कै तोहि अकेली छोड़ जायँगी।

विला॰--- सखी, तू व्यर्थ प्रा्न देने को मनोरथ करै है, तेरे प्रान तोहि न छोड़ैगे। जौ प्रान तोहि छोड़ जायँगे तो इनको ऐसो सुन्दर शरीर फेर कहाँ मिलैगो।

का॰ म॰--- सखी, ऐसी बात हम सूँ मति कहै, और जो कहै सो सो हम करिबे को तयार हैं, और या बात को ध्यान तू सपने हू मैं मति करि। जब ताईं हमारे प्रान है तब ताई तोहि न मरन देंयगी। पीछे भलेई जो होय सो होय।

चन्द्रा॰--- (रोकर) हाय! मरने भी नहीं पाती। यह अन्याय!

माधवी--- सखी, अन्याय नहीं यही न्याय है।

का॰म॰--- जान दै माधवी वासों मति कछू पूछै। आओ हम तुम मिलकै सल्लाह करैं, कि अब का करनो चाहिये।

विला॰--- हाँ माधवी, तू चतुर है, तू ही उपाय सोच।

माधवी--- सखी, मेरे जी मे तौ एक बात आवै। हम तीनि हैं सो तीनि काम बाँटि लें। प्यारीजू के मनाइबे को मेरी जिम्मा। यही काम सबमें कठिन है और तुम दोउन मैं सो ऐक याके धरकेन सों याकी सफाई करावै और एक लालजू सों मिलिबे की कहै।

का॰म॰--- लालजी सों मैं कहूँगी। मै विन्नै बहुती लजाऊँघी और जैसे होयगो वैसे यासों मिलाऊँगी।

माधवी--- सखी, वेऊ का करैं। प्रियाजी के डर सों कछू नहीँ कर सकैं।

विला॰--- सो प्रियाजी को जिम्मा तेरो हुई है।

माधवी--- हाँ, हाँ, प्रियाजी को जिम्मा मेरो।

विला॰--- तौ याके घर को मेरो।

माधवी--- भयो, फेर का। सखी काहू बात को सोच मति करै। उठि।