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श्रीचन्द्रावली


देखि-देखि दामिनो की दुगुन दमक पीत-
पट-छोर मेरे हिय फहरि-फहरि उठे॥

हाय! जो बरसात संसार को सुखद है वह मुझे इतनी दुखदायिनी हो रही है।

माधवी―तौ न दुखदायिनी होयगी चल उठि घर चलि।

का० मं०―हाँ, चलि।

सब जाती हैं
 

(जवनिका गिरती है)

॥ वर्षा-वियोग-विपत्ति नामक तृतीय अंक ॥



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