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श्रीचन्द्रावली

बलि बलि बिछुरनि मिलनि हन्सनि रूटनि नित ही यारी की । त्रिभुवन की सब रती गति मति छ्बि या पर बलिहारी की ॥ हाय ! यहा आज न जाने क्या हो रहा है , मै कुछ सपना तो नही दैखती । मुझै तो आज कुछ समान ही दूसरे दिखाइ परते है । मेरे तो कुछ समझ ही नही परता कि मै क्या देख सुन रही हू ।क्या मैने कुछ नशा तो नही पिया है । अरे यह जोगिन कही जादुगर तो नही है । ललिता - क्यो, आप हसती क्यो है ? जोगीन - नही।योही मै इसको गीत सुनाया चाहती हू पर जो यह फिर गाने का करार करे । च्न्दा- हा मै अवसय गाउगी, आप गाइए। तू केहि चितवित चकित म्रिग्सी? केहि दूध्त तेरो कहा खायो क्यो अकुलति लखती टगी सी ॥ तन सुधि करू उधरत री आन्चर कोन ख्याल तू रहीत खगी सी । उतरु न देत जकी सी बैटी मद पीयो कै रैन जगी सी॥ उतरू न देत जकी सी बैतटी मद पीयो कै रैन जगी सी ॥ चोकि चोकि चितवित चारहु दिस सपने पिय देखति उमगी सी । भूली बैखरी म्रिग्छोइनि ज्यो निज दल तजि कहुन दूर भगी सी ॥ करती न लाज हाट घर बर की कुलमरजादा जाती जगी सी । हरिच्न्ध ऐसहि उरघझी तो क्यो नहि डोलत सञ लगी सी॥