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श्रीचन्द्रावली

अति कोमल सब अंग रंग साँवरो सलोना।
घूँघरवाले बालन पैं बलि वारौं टोना॥
भुज बिसाल, मुख चंद झलमले, नैन लजौं हैं।
जुग कमान सी खिची गड़त हिय में दोउ भौ हैं॥
छबि लखत नैन छिन नहिं टरत शोभा नहि कहि जात है।
मनु प्रेमपुञ्ज ही रूप धरि आवत आजु लखात है॥
तो चलो, हम भी अपने-अपने स्वॉग सजकर आवें।
( दोनों जाते हैं)
॥ इति प्रस्तावना ॥


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