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श्रीचन्द्रावली

जाते हैं। पुष्टिमार्गीय के अनुसार परब्रहा कृष्ण के ही अंंश हैं और उन्हीं के अधीन हैं।

व्रज की गोपियाँ―भगवान् के अनुग्रह से गोपीजन द्वारा ही पुष्टिमार्ग प्रवर्तित हुआ माना जात है। साकैतिक अर्थ में गोपियाँ वेद की ॠचायें हैं।

अकथनीय और अकरणीय―कथन से परे, वर्णनातीत और जिस्का अनुकरन न किया जा सके।

माहात्म्य-ग्यान―इस बात का ज्ञान कि श्रीकृष्ण ही परसच्चिदानन्द ब्रह्म स्वरूप परमात्मा और सार्वसामर्थ्यवान् है, वे ही सेव्य और आश्रम लेने योग्य हैं। जीव के रक्षक श्रीकृष्ण ही हैं।

पूर्ण प्रति―एकान्त अनुरक्ति। श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग रहते हुए पूर्ण आत्मसमर्पण।

निवृत्त―मुक्त, विरक्त।

नारद―ब्रह्मा के मानस-पुत्र। सदा तर्पण करते रहने से नारद कहलाए। उनके विषय मे हरिवन्श, भगवान, महाभारत आदि मे बहुत कुछ लिखा हुआ है। दुष्टों का नाश कराने मे वे सदा दत्तचित्त रहे। नारद-सूत्र या नारद-पन्चरात्र उनकी रचना कही जाती है। वे हरिभक्त प्रसिद्ध हैं।

पिंग―पीला।

जोहत―देखने से

मृगपति―सिह।

सात सुर―सात स्वर (संगीत)―षड्ज, ऋषभ, गाधार, मध्यम, पंचम, धैवता और निषाद (सा, रे, ग, म, प, ध, नि)।

जग―दो।

अध―पाप।

लय अरु सुर―संगीत मे गाना गाने, बजाने, पैर एक साथ उठाने आदि को दिखाने के लिये काल और क्रिया साम्य। द्रुत, मध्य और विलम्बित लय।

सुर―स्वर।

आरोहन अवरोहन―आरोहन―चढ़ाव; अवरोहन―उतार। संगीत में स्वरों का चढ़ाव और उतार।

कोमल अरु तीव्र―कोमल―संगीत में स्वर का एक भेद; तीव्र―संगीत में कुछ ऊँचा और अपने स्थान से बढ़ा हुआ स्वर। एक स्वर शुद्ध भी होता है। राग विशेष के अनुसार स्वर कोमल या तीव्र या शुद्ध होते हैं।

गुन गन―गुणों का समूह।