पृष्ठ:Shri Chandravali - Bharatendu Harschandra - 1933.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
श्रीचन्द्रावली

खीझ रही है―क्रुध्द हो रही है, झुँझला रही है।

हाहा ठीठी―हँसी-मजाक।

भोर―सुबह।

_________
दूसरा अंक

वाह प्यारे! वाह!...जिसे तुम आप देते हो―चन्द्रावली के इस कथन से ‘कृष्णानुग्रहरूपा हि पुष्टिः’ का समर्थन होता है। पुष्टिमार्ग मे भगवान् कृष्ण और उनकी कृपा ही मुख्य हैं। भगवान् की कृपा ही भगवान् से मिलाने का एकमात्र साधन है।

विलक्षण―अलौकिक।

अखंड―तूर्ण।

ज्ञान वैराग्यादिकों को तुच्छ करके परम शांति देनेवाला―शास्त्र-ज्ञान-गृह-त्याग, संसार-त्याग आदी का पुष्टिमार्ग मे उतना महत्व नहीं है, जितना प्रेम का। भगवान् जीव का समर्पण भाव देखते है, अनुराग देखते है, उसकी किसी प्रकार की शक्ति पर अनुरक्त नही होते।

अभिमान―ज्ञान, धर्म और लौकिक सत्ता का अभिमान।

कोई किसी स्त्री...चित्त लगाना―भौतिक प्रेम का रूप।

ईश्वर की बढी लम्बी-चौढी पूजा―मर्यादा मार्ग।

अमृत―प्रेम रूपी अमृत।

जिसे तुम आप देते हो―जिस पर आपका अनुग्रह या कृपा होती है।

रार―झगड़ा।

बकि कै―वकवास कर, कहकर, प्रकट कर।

परतीतहि छीजिए―प्रतीति―विश्वास, छीजना―क्षीण होना, घरना।

मरम की पीर―परम―मर्म, प्राणियों के शरीर का वह स्थान जहाँ आघात पहुँचने से अधिक वेदना होती है,ह्रदय। पीर―पीड़ा।

जरनी―जलन।

बे-महरम―इसका पाठ ‘वे-बहरम’ की और बे-बहरम मिलता है। ‘बे-बहरम’ पाठ लेंने पर अर्थ लगाया जा सकता है―निर्दयी। बा० व्रजरत्नदास ने 'बे-महरम' पाठ दिय जो युक्तिसगत प्रतीत होता है। अर्थ है 'भेद न जानने वाला'।

लोय―लोग।