पृष्ठ:Shri Chandravali - Bharatendu Harschandra - 1933.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६७
श्रीचन्द्रावली

श्रीचन्द्रावली पुंकवाना-कोई सिद्ध या साधु किसी की कामना की पूर्ति के लिए जब कान में मंत्र सुनाकर दीक्षा देता है तो उसे 'कान फूंकना' कहते हैं । साधारणतः किसी स्त्री का किसी साधु से काम-दीक्षा प्राप्त करना 'कान पुंकवाना' कहा जाता है । माधुरी के कहने का तात्पर्य यह है कि तू भी किसी से अपना मनोरथ पूर्ण करा ले । पीर-वेदना, व्यथा । कदम-कदम्ब वृक्ष । दईमारों-दैव के मारे हुए । एक प्रकार की गाली जिसका प्रयोग अब भी ब्रज मं होता है। इन दईमारों का कूकना...लगाते हैं-कामिनी का यह कथन रीतिकालीन परं- परा के अतर्गत है। ठाकुर ने कहा है-'धनि वे धनि पावस की रतियाँ पति की छतियाँ लगी सोवती है ।' देव का भी कहना है.---'चौगुनो रंग चढे चित में चुनरी चुचात लला के नि चोरत' । और तेरो...बढ़े हीगा नहीं-कामिनी के ऊपर वाले कथन-~-'दोनों परस्पर पानी...बढ़ाते हैं' के बदले में दिया गया उत्तर । चूनरी-वह रंगीन ओढ़नी जिसके बीच-बीच में बुंदकियाँ होती हैं। सगबगी-भीगी हुई। बलैया लेना-किसी का दुःख अपने ऊपर लेना, मंगल-कामना करते हुए प्यार करना। समा बँधना-~-संगीत आदि का इतनी उत्तमता से होना कि लोगों का स्तब्ध __ हो जाना, संगीत में लय हो जाना । गाँती-गाती, वह वस्त्र जो आगे से गले मे बाँधा जाता है, गले में वस्त्र लपेटने का एक ढंग । पेंग मारना-झूले पर झूलते समय झोटे लेना, अर्थात् एक ओर से दूसरी ओर इस ढंग से जाना कि वेग बढ़ जाय । नैनों में पिया की मूर्ति मूल रही है-नेत्रों में प्रियतम बसे हैं । राधिका के __ हिय झूलत साँवरो के हिय झूलति राधा' । हूलित-पीड़ित होती है। विरह-सूल-विरह-रूपी काँटा । घन-घोरे-बादल की गंभीर गरज । मुरनि-मुड़ने का ढंग। कजरारे द्ग डोरे पै-अंजन युक्त आँखों के डोरों पर ।