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श्रीचन्द्रावली

कनौड़ी करी कुल तें―कुल से भी तुच्छ किया, अथवा कलंकित या अपमानित किया।

गाली दूँँगी―दुर्वचन कहूँगी, कलंक-सूचक आरोप लगाऊँगी। ये गालियाँ ब्याज रूप में है। वास्तव मे चन्द्रावली ने दुर्वचनों के रूप में श्रीकृष्ण के परम-ब्रह्मत्व का वर्णन किया है।

मर्म्म वाक्य―वेदना पहुँचानेवाले वाक्य, रहस्य-वाक्य।

निर्द्दय, निर्घृण...अपनी ओर देखो―इन सब वाक्यों में चन्द्रावली ने ऐसे श्रीकृष्ण का वर्णन किया है जो प्रपचपूर्ण सृष्टि के कर्ता है, किन्तु स्वयं दोष-रहित हैं, उससे अलग रहते हैं, जो किसी मोह-ममता में नहीं पड़ते, जो सर्वगुणसंपन्न साथ ही सब गुण से पर है, जो भक्तवत्सल है, सर्वज्ञ व्याप्त हैं, जिनका जीव एक अंश है, जो स्वंय अविद्या रो रहित हैं, जिनमें विरुद्ध-अविरुद्ध, सर्वशक्ति और धर्म का समावेश माना गया है आदि, आदि।

निघृण―निंदित, निर्दय, जिसे गंदी वस्तुओं या बुरे कामों से घृणा या लजा न हो।

निर्दय हृदय कपाट―कपाट―किवाड़, पट। जिसके हृदय का कपाट किसी के लिए न खुला हो, अर्थात् जो कठोर और दयाहीन हो, जिसका हृदय न पसीजे।

बखेड़िये―बखेड़ा अर्थात् व्यर्थ विस्तार या आडम्बर करनेवाला, झगड़ालू। संसार रूपी बखेड़ा।

क्यों इतनी छाती ठोंक...विश्वास दिया―अर्थात् शरणागत पालक होने की क्यों घोषणा की। पुष्टिमार्ग में ही नही सर्वत्र भगवान् भक्तों के रक्षक माने गए हैं। गीता में स्वयं भगवान् ने घोषणा की है।

जहन्नुम में पड़ते―जहन्नुम―नरक। आपसे कोई सम्बन्ध न होता। आपके अपने शरण में न लेने से उनका उद्धार ही न होता।

तुर्रा―उस पर भी इतना और, सबके उपरान्त इतना यह भी।

सब धान बाइस पसेरी―जहाँ अच्छे-बुरे, ऊँच-नीच का ख्याल न हो। सब को एक ही दृष्टि से देखना।

उल्लू फँसे हैं―बेवकुफ बने हैं।

चाहे आपके...फँसे हैं―आपके प्रेम में दुःखी हों या सांसारिक विषय-वासना से पीड़ित हों, आप दोनों में से किसी की खबर नहीं लेते। सभी जीव अविद्या आदि दोषों से युक्त हैं।

उपद्रव और जाल―सांसारिक उपद्रव और जाल।