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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/१०१

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तुलसी चौरा :: ९९
 

'मेरी तो राय यही है, कि कमली भी यहीं ठहर जाए। अम्मा लाख समस्यायें पैदा करें, कमली उन्हें संभाल लेगी।'

'यह तुम कह रहे हो। वह जाने क्या सोच रही होगी?'

'इसमें कैसा दुराव छिपाव। आइए, मैं अभी पुछवा देता हूँ।'

'मैं क्या करूँगा वहाँ आकर! तुम ही पूछ कर बता देना।'

'नहीं! मैं एक खास मकसद से कह रहा हूँ। तभी आप उसे समझ पायेंगे। शक की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।'

शर्मा जी हिचकिचाए।

'सोचिए मत बाऊ जी। मेरे साथ चलिए।'

रवि उठ गया। शर्मा जी भी उसके पीछे चल दिए।

वे लोग ऊपर पहुँचे तब भी दुर्गा स्तुति पाठ चल रहा था।

'पास, तुम नीचे जागों बिटिया। हमें कुछ बातें करती हैं।'

शर्मा जी ने उसे भिजवा दिया। रवि को, पारू को इस तरह भिजवा देना अच्छा नहीं लगा!

'वह भी रह जाती बाऊ जी, उसे क्यों भिजवा दिया।'

'नहीं वह बाद में आ जायेगी। तुम चुप रहो।'

रवि ने फिर इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा।

कमनी उन्हें आते देख उठकर खड़ी हो गयी थी।

'मैं कुछ पूछूँगा तो आपको लगेगा, यह मेरे लिए जबाब दे रही हैं। आप खुद ही पूछ कर देख लें। रवि ने कहा।

शर्मा और रवि कुर्सी पर बैठ गए। कमली नहीं बैठी।

'बैठो बिटिया। हम तुमसे कुछ बातें करना चाहते हैं। कब तक खड़ी रहेगी। मैं तुम्हारा लिहाज समझ रहा हूँ। अब मैं कह रहा हूँ। बैठ जाओ।’

'कोई बात नहीं। खड़े रहने में मुझे कोई दिक्कत नहीं।'

'तुम्हें हो न हो, हमें तो है न।'

'नहीं, आप कहिये तो.......।'