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१०२ :: तुलसी चौरा
 

अब उससे यह पूछना कि वह वेणुकाका के साथ ठहरेगी या नहीं मूर्खता भरा प्रश्न था। रवि ने कमली के विषय में जो कुछ भी कहा था, बह शत-प्रतिशत सही है। कामाक्षी की हरकतों के प्रति ही वे भयभीत थे। अब उन्हें विश्वास हो गया कि कमली इन हरकतों से प्रभावित नहीं होगी।

संझबाती वाली बात को लेकर कहीं कमली रवि से कुछ कह न बैठे, उसका खटका उन्हें था। पर कमली ने साफ जता दिया कि उसके मन में इस बात को लेकर कोई मैल नहीं है। कामाक्षी के प्रति उसकी श्रद्धा में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया है।

कमली की ओर से समस्यायें भले ही उठें, पर कामाक्षी की ओर से या फिर इस गाँव वालों की ओर से समस्या उठ सकती है। इसका भय उन्हें था।

रवि नीचे आ गया। बाप-बेटे ने इस विषय पर फिर से कोई बातचीत नहीं की। अगले दिन वेणूकाका से गाड़ी लेकर रवि और कमली पांडीचेरी, कारैक्काल आदि स्थानों के लिए निकले। साथ में किसी ड्राइवर को ले जाने पर काका ने जोर दिया।

'नहीं काका, हम दोनों ही ड्राइविंग जानते हैं। कोई खराबी आ जाए तो हम संभाल लेंगे।'

हालांकि वे सप्ताह भर के लिए गये थे। घर उन्हें लौटने में दस दिन लग गए।

दस दिनों तक घर सूना पड़ा रहा।

वे लोग जिस समय घर लौटे, कामाक्षी बैठक में बैठी हुई वीणा में राग तोड़ी बजा रही थी। भीतर प्रवेश करते ही कमली खड़ी की खड़ी रह गयी। साक्षात् सरस्वती की तरह लग रही थीं वे। राग की वर्षा में पूरा घर भीग उठा था।

कमली के लिए यह अनिवर्चनीय अनुभव था। वीणा बजाती कामाक्षी के चेहरे की अपूर्व आभा को ठगी सी देखती रह गयी।