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तुलसी चौरा :: १०३
 

'क्या हुआ बेटी? अभी लौटी हो! यहीं क्यों खड़ी रह गयी?' शर्मा जी के प्रश्न ने उसे यथार्थ में ला पटका। रवि अटैची लिए भीतर आ गया।

कमली का ध्यान अब भी कामाक्षी की उस अलौकिक रुप पर ही रमा हुआ था।

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पर अगले कुछ दिनों में जो कुछ घटा, वे शर्मा जी की धारणा के विपरीत ही रहीं। कर्मकांडी ब्राह्मण परिवार, यहाँ के नियम, धर्म एवं असुविधाएँ, पुरातन पंथी गृहस्वामिनी का व्यवहार कमली के लिए अड़चनें ही पैदा कर सकती हैं। शर्मा जी ने यही सोचा था! पर कमली ने उस घर के नियमों के अनुरूप अपने को ढालना शुरू कर दिया, पूरे समर्पण भाव के साथ। उसने अपने को इस घर की परम्पराओं के अनुकूल ढाल लिया, घर के अन्य सदस्यों को अपनी इच्छा के अनुरूप बदलने की कोशिश नहीं की। कमली के प्रति शर्मा जी की सहानुभूति का कारण, उसका यह स्वभाव ही था।

जिस रात वे पांडीचेरी से लौटे, कमली ने रवि से कहा था, 'आपकी माँ को वीणा बजाते देखने लगा था, जैसे साक्षात् वीणा- वादिनी उतर आयी हो।'

'अच्छी डिप्लोमेसी है, यह। दुश्मन को भी प्रशंसा से जीत लो।' रवि उसे छेड़ना चाहता था। पर कमली के स्वर में इतनी मुग्ध आर्द्रता थी कि वह उसके पीछे छिपी श्रद्धा को भांप गया। इसलिए चुप रहा।

'अम्मा में पुरातन कर्मकांडी परिवार की सारी विशेषताएँ मौजूद हैं।'

मेरा मतलब प्लस और माइनस दोनों ही गुणों से हैं। पर देख रहा हूँ, तुम अम्मा के प्लस पाहट को ही देखती हो....।'

'जो चीज हमें नहीं रुचे, उसे माइनस पाइंट कह देना गलत है रवि।'