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१०४ :: तुलसी चौरा
 

'रवि को लगा कि वह स्वयं रवि के मुँह से अम्मा की कम- जोरियों को नहीं सुनना चाहती। अम्मा की फुर्ती, तुलसी पूजन, गोपूजन करना, गिट्टो खेलना, कौड़ियाँ खेलना, वीणा बजाना, स्त्रोत श्लोक पाठ करना, सब कुछ कमली के लिए अपूर्व है। लगा कि उसने कमली को इन तमाम विरोधाभाषों के बीच जीने का जो अभ्यास फ्रांस में करवाया था, उसमें आशातीत सफलता मिली है।

'मुझे अम्मा की तरह नौ गजी धोती पहनने की इच्छा है। बसंती को कल बुलवाया है सिखाने के लिए।' कमली ने कहा सो रवि चौंक गया। जब अपने ही यहाँ की युवतियाँ अठारह हाथ की लांग वाली धोती पहनना भूलती जा रही हैं। ऐसे में कमली की इसके प्रति रुचि उसे अच्छी लगी।

X XX
 

अगले दिन सुबह इरैमुडिमणि अपनी नई दुकान के उद्घाटन में जन्हें आमंत्रित करने आए, तो शर्मा जी घर पर नहीं मिले। रवि और कमली को अपने आने का मकसद बता कर चले गए।

'देखो बेटा, बाऊ जी भले ही न मानें, पर हम तो मुहूर्त और लग्न के विपरीत ही काम करते हैं। कल का दिन शुभ तो नहीं, पर मैं कल ही उद्घाटन करवा रहा हूँ। वे आएँ न आएँ, उनकी मर्जी है। तुम आओगे तो इन्हें भी लेते आना।'

सुबह साढ़े नौ बजे जब शर्मा जी लौटे तो रवि ने सूचना दी।

पर शर्मा जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। पर उनका चेहरा परे- शान लग रहा था।

'वह अपने ढंग से अशुभ दिन में कमी की शुरूआत कर रहे हैं। आपको भी आने को कहा है―।

'..............'

'क्या हुआ बाऊ! आपका चेहरा उतरा क्यों है?'