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पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/११

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शंकरमंगलम विश्वेश्वर शर्मा के परिवार में बुधवार और शुक्रवार के बीच भला ऐसा क्या घट गया है? हो सकता है इसका मूल कारण रवि का वह पत्र हो जो पैरिस से लिखा गया था। पं॰ विश्वेश्वर शर्मा इस बीच जाने क्या-क्या सोच गए थे। पर अब क्या करेंगे वे? बेटे की इस जिद को कैसे मान लें वह? लोग बाग भला क्या कहेंगे...ऐसी ही जाने कितनी ऊल जलूल बातें जेहन में घूम गयीं।

अब तो उन्हें लगता है, रवि को पैरिस भिजवाकर भूल की। वेणु काका की सलाह पर अखबारों में जो वैवाहिक विज्ञापन देना चाहते थे, उसकी तो अब जरूरत ही नहीं रही। साहबजादे ने कुछ गुँजाइश बचा रखी हो, तब न! सब कुछ तो खत्म हो गया है अब!

इसी शुक्रवार की ही तो बात है, स्थानीय संवाददाता विज्ञापन लेने आया तो वे सफाई से टाल गए बोले ‘फिर देख लेते हैं। ऐसी भी क्या जल्दी मची है।’ अपना कहा खुद को झूठ लगा।

जबकि बुधवार को, उसे स्वुद ही कहलवा भेजा था। सारा हिसाब भी लगा लिया था। पर शुक्रवार के आते-आते सब कुछ पलट गया।... एजेन्ट भी बेचारा दुखी हो गया होगा उसका कमीशन जो मारा गया।