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तुलसी चौरा :: १०९
 


पूर्णता है।'

'पर कितना खूबसूरत विरोधाभास है, बाऊ। एक ओर जब ओसारे पर पान चबाते, ताश के पत्ते खेलते सीमावय्यर को देखता हूँ, और दूसरी ओर इनके बारे में सोचता हूँ तो लगता है, ज्ञानू का जाति से कोई सम्बन्ध नहीं है न?' रवि ने पूछा। शर्मा ने कोई उत्तर नहीं दिया। उन्होंने उत्तर भले ही न दिया हो, पर वे उसके बारे में लगातार सोच रहे हैं, वह यह जानता है। वह सोच रहा था, बाऊ उसकी इस बात को कहेंगे, पर बाऊ जी की चुप्पी उसे सन्तोषजनक लगी।

XXX
 

घर लौटते ही, सीमावय्यर के प्रचार का परिणाम भी उन्होंने देख लिया। अग्रहारम के तीन चार सम्माननीय व्यक्ति उनकी प्रतीक्षा में खड़े थे। शर्मा जी ने उनका स्वागत किया और ओसारे पर ही बैठ गए। रवि और कमली भीतर चले गये।

आगंतुकों के चेहरे देखकर ही शर्मा जी उनका मकसद भाप गये।

भजन मंडली के पद्यनाभ अय्यर, वेद धर्म सभा के सचिव हरि- हर गनुपाड़ी, कर्णम मातृभूतम, और जमींदार स्वामीनाथ―भी आये थे। बात की शुरूआत हरिहर गनपाड़ी ने की, 'जब यह सार्वजनिक सम्पत्ति है, तो मठ से जुड़े चार लोगों से सलाह लेनी चाहिये थी। अग्रहारम का ही कोई तैयार हो जाता। पहले उनसे पूछ लेना चाहिये था आपको।'

शर्मा जी ने धैर्य के साथ इसका उत्तर दिया। पर किसी ने भी उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

'आप टेंडर मँगवा लेते। बोलियाँँ लगती और अच्छा किराया मिल जाता। एक नास्तिक को नहीं मिलनी चाहिये थी।'

'श्रीमठ को मैंने लिखा था। उन्होंने तो सिर्फ इस बात पर जोर दिया था कि किराया समय पर मिल जाये। पार्टी को नेक और ईमान-