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तुलसी चौरा :: ११३
 


तार आया और शर्मा जी कामाक्षी को लेकर यहाँ चले गए। लौटते में हफ्ता लग जाने की संभावना थी। कामाक्षी ने घर की जिम्मे- दारी पार्वती को सौंप दी थी। ज्यादातर पक्का खाना बैठक में ही बनाने की सख्त हिदायत भी।

शर्मा जी के जाने के दूसरे तीसरे दिन घर पर एक दुर्घटना हो गयी। जान बूझकर दुर्घटना की गयी थी। किसने की है यह भी साफ ही जाहिर था। पर यह व्यक्ति नहीं मिला? पिछवाड़े में बाग और गौशाला के बीच में पुआल का ढेर था। सुबह तीन बजे के लगभग किसी ने उसमें भाग लगा दी। मीनाक्षी दादी अपने घर के पिछवाड़े में आई, तो लपटें उठती देखी और चीख पुकार मचाने लगी। दादी में तो जब देखा तब तक देर हो चुकी थी। आग गौशाला तक पहुँच गई थी। घर के लोग सो रहे थे। जब तक ये लोग पहुँचे अड़ोस-पड़ोस के लोग बाल्टियों से आग बुझाने लग गए थे। पर आग इतनी आसानी से नहीं बुझ रही थी। गौशाला की छत गिर गई, इसलिए एकाध बछड़ों के अलावा शेष सब गायें दब गयीं। घर में धुआँ फैल गया। पिछवाड़े के दरवाजे और आंगन के बीच लगी तुलसी के पत्ते भी झुलस गए। यदि गौशाला की छत दबने के बजाय, एक किनारे ढहती तो तुलसी चौरा टूट चुका होता।

लोमबाग, कुएं से पानी निकाल-निकाल कर लपटें बुझाने की कोशिश करते रहे। पूरी कोशिश करते रहे कि गायों को निकाल लिया जाए। पर नहीं हो पाया। अंत में बाकी धरों की गौशालाओं को आग से बचाने का अभियान चलने लगा।

किसी से समाचार मिलते ही इरैमुडिमणि दस पन्द्रह आदमी लेकर भागते हुए चले आए। वे भी इस अभियान में शामिल हो गए।

सुबह तक आग काबू में आ चुकी थी। फूल का ढेर राख हो