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तुलसी चौरा :: ११५
 


बाऊ जी की इस हरकत पर रवि को एक पौराणिक घटना याद आ गयी। एक बार राजर्षि जनक अपने अन्य विद्वानों के साथ एक सुरम्य स्थान पर चर्चा में लीन थे। उन्हें तो दीन दुनिया का होश भी नहीं था। बस ज्ञान के अथाह सागर में गोता लगा रहे थे। तभी कोई भागा आया और बोला, 'मिथिला में आग लगी है राजर्षि जनक शांत रहे, और बोले, मैंने तो मिथिला में कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ी है। जो बाद में मिल नहीं सके। यह घटना राजर्षि जनक का वीतरागी स्वभाव और ज्ञान के प्रति उनकी अटूट आस्था का ही उदाहरण है।'

उस दिन बाऊजी उसी जनक की तरह लगे।

XXX
 

बाऊ को दुख हुआ होगा, पर पानी की लकीर की तरह सब कुछ मिट गया। लोगों की बातें भी उन्होंने सुनी, पर कुछ नहीं बोले। भूमिनाथपुरम के अपने किसी परिचित को दूसरी गाय भिजवाने को कहला भेजा।

पर अम्मा का व्यवहार ठीक विपरीत था। लोगों की बातें उसने भी सुनी थी।

दादी ने ही उन्हें बताया था कि मठ की जमीन नास्तिक को दी गयी है और घर पर अनाचारी लोगों से पूजा पाठ करवाया गया है। ईश्वर की आँखें क्या फूट गयी हैं, वह तो देखता है। पर कामाक्षी को पार्वती से पता चल गया कि उसकी अनुपस्थिति में सारा पूजा पाठ कमली ने किया था।

इसे किसने कह दिया। उनके यहाँ तो कुल्ला किए बगैर कॉफी पी जाती है। न आचार, न नियम, न अनुष्ठान। इसलिए तो यह सब गत हुई है। इस घर में मेरी सुनता कौन है। यहाँ तो पीढ़ियों से गो- पूजन, तुलसी पूजन चला आ रहा है। घर की सम्पन्नता तो इसी पूजा का फल है। एक फिरंगिन में पूजा पाठ की कौन सी योग्यता है?