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११६ :: तुलसी चौरा
 


आने दो उन्हें। मैं छोड़ूँगी नहीं। इनसे साफ साफ कह दूँगी।

'अम्मा कमली तो तुम्हारी ही तरह नहा धोकर यह सब किया करती थी।' पार्वती ने उसका पक्ष लिया।

'चुप कर! तेरे प्रमाण पत्र की कोई जरूरत नहीं, समझी। कामाक्षी ने उसे झिड़क दिया।

पार्वती को अम्मा का गुस्सा नहीं जँचा। अम्मा कमली पर बे- वजह नाराज हो रही हैं।

दस पंद्रह दिनों में ही, तुलसी में नयी कोपलें फूटने लगीं। भूमि- नाथपुरम से आयी नयी गाय और बचे हुप बछड़े एस्वेस्टस की छत के नीचे आराम से जुगाली कर रहे थे। पर इन तमाम बातों के बीच कमली की ही आलोचना हुई।

बाहर वालों ने तो इस कांड का जिम्मेदार उसे ठहराया ही। घर पर कामाक्षी ने भी कभी खुल कर, कभी प्राकारान्तर से यही खरी खोटी सुनाई। शर्मा से खूब झगड़ी। पर वे टस से मस नहीं हुए। कमला की विनम्रता, उसका शील, हिन्दू धर्म के प्रति उसकी आस्था और इस धर्म में घुल जाने की उसकी तत्परता―शर्मा जी को बहुत अच्छा लगा था। अपनी ही संस्कृति को अंधविश्वास समझकर भूलते जा रहे भारतीयों के सामने, विज्ञान और तकनीक में विकसित देश से आयी वह युवती इसकी विनम्रता, इसका स्वभाव उन्हें बेहतर लगा था।

शर्मा जी ने कमली के गोपूजन, तुलसी पूजन, दुर्गा सप्तशती पाठ को एक मनोरंजन या अलोचना की दृष्टि से नहीं देखा। उसमें निहित उसको अंतरंग शुद्धि को वे समझ सके। जो आदमी की भीतरी शुद्धि को नहीं समझ पाता, वह कतई सत्य मानने योग्य नहीं, यह उनकी मान्यता रही।

कमली सुबह योगासन करती है, यह वें जानते हैं। एक दिन बनियाइन और पैंट पहने वह शीर्षासन में लीन थी, तो कामाक्षी ने