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११८ :: तुलसी चौरा
 


ने इन आरोपों पर विश्वास नहीं किया। आचार्य का मेरे प्रति स्नेह और वात्सल्य कम नहीं हुआ। जब मैं वहाँ गया था तो अर्जेन्टाइना से एक युवती वहाँ आयी थी। ऋग्वेद पर आचार्य जी से चर्चा कर रही थी।

मैंने उन्हें बताया कि मैं आत्मा के साथ विश्वासघात नहीं किया है। श्रीमठ के आदेशों को मैंने हमेशा माना है। यदि आचार्यजी को सन्देह हो तो मैं मठ का कार्य छोड़ने को तैयार हूँ। मैंने जो भी किया मुझे इसमें लेशमात्र भी लालच नहीं है यह श्रीमठ का काम समझकर ही मैंने किया। मेरे बताने पर आचार्यजी को असली बात का पता लगा।

बोले, ‘तुम पर पूरा विश्वास है। तुम ही मठ का सारा कार्य भार देखोगे!’ गुमनाम पत्र की वजह से तुम्हें यहाँ बुलवा लिया और स्पष्टीकरण भी तुमसे मांगा। इसे अन्यथा मत लेना। मुझे तब कहीं जाकर तसल्ली हुईं। कामू के साथ जब आचार्यजी से मिलने गया तब ये बातें नहीं हुईं। फिर अकेले में बातें हुईं। तुम्हारी माँ को ये बातें नहीं मालूम हैं। पता चल जाए तो बस, कमली पर ऐसे ही बरसा करती है। फिर तो खदेड़ ही देगी।’

रवि को पहली बार अपनी वजह से बाऊ को होने वाली परेशानियों का एहसास हुआ।

‘पता नहीं लोगों को इन बेकार के झगड़ों में क्या मजा आता है। अब तो यूरोप में इससे भी अधिक शाकाहारी होने लगे हैं। कमली तो मुझसे मिलने के बाद पूरी तरह शाकाहारी बन चुकी है। अब तो शाकाहारी खानों को हेल्थ फूड कहा जाता है। अब तो सभ्यता का पुनर्जागरण इस रूप में हो रहा है, और यहाँ लोगों को इन फालतू बातों से फुर्सत नहीं।’ रवि ने कहा।

‘बुरा मत मानना। मैं तो तुम्हें सूचित भर करना चाहता था। रवि, मैं इन बातों से नहीं घबराता। मेरी सोचः बहुतः साफ होने लगी है।