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१२२ :: तुलसी चौरा
 


तो इसमें मेरा क्या दोष! तो क्या तुम चाहती हो मैं पैर पड़कर उन्हें मनाऊँ?'

'वह गाँव जाकर मुझ पर थूकेंगी। ऐसे ही तुम्का फजीहत क्या कम हो रही है?'

शर्मा जी चुप रहे। शर्मा जी का दृढ़ विचार था कि एक सीमा तक मौन धारण करना घर के कलह को कम करने में सहायक होता है।

कमली को इस बात का पता न चले कि उसकी वजह से घर में कलह मच रहा है, इस स्थिति के प्रति वे सतर्क थे।

एक दिन रवि से ही लड़ बैठी कामाक्षी। 'सारे फसाद की जड़ तू ही है।'

'मैंने क्या किया है, अम्मा! अगर मौसी खुद ही गयी हैं, तो कौन क्या कर सकता है? कमली तो तुम्हें भगवान की तरह पूजती है। तुम उसे गालियाँ निकालती हो।'

'हाँ रे, एक यही तो रह गयी है, मुझे पूजने वाली! मैं तो यहाँ रात-दिन घुट रही हूँ। अब जाओ तुम………।'

'तो कहाँ जाऊँ? पेरिस?'

कामाक्षी चली गयी चुपचाप।

कमली की पढ़ाई निर्वाध चलती रही। ध्वनि वक्रोक्ति, ध्वन्यालोक के बारे में कमली शर्मा जी से पूछा करती। शर्मा जी उसकी रुचि और कुशाग्र बुद्धि पर मुग्ध होते।

'अब तो मैं भी भूलता जा रहा हूँ। अच्छा हुआ तुझे पढ़ाने के बहाने मुझे भी सब याद आ रहा है। महान विद्वानों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि संस्कृत की यह दुर्दशा होगी।'

'कई यूरोपीय भाषाओं की जननी लैटिन का जो हाल हुआ है, वहीं भारत में संस्कृत का भी हुआ है। पुरातन लैटिन भाषा आज धार्मिक संस्थाओं, चौं तक की सीमित रह गयी है इसी तरह संस्कृत