यह! शंकरमंगलम में ही नहीं, आस-पास के गाँवों में भी अफवाह फैला दी।
दो दिन बाद शाम के वक्त रवि को पिछवाड़े में बुलाकर कामाक्षी ने जवाब तलब किया।
'क्यों रे, यह मैं क्या सुन रही हूँ। इरैमुडिमणि के यहाँ गोष्ठी में इतने लोगों के सामने तुमने शर्म ह्या छोड़कर उसे माला पहनायी थी।'
रवि को हँसी आ गयी। पर हँसता तो अम्मा का गुस्सा और भड़क जाता। यही सोचकर बोला, 'औरतों में कोई और तैयार ही नहीं हो रही थी, सो मुझे ही पहनाना पड़ा।'
'सांड सी उम्र हो गयी है। कोई किसी भी लड़की को दिखा कर कह दे, तो क्या माला पहना दोगे?'
'इसमें गलत क्या है, अम्मा?'
'तुमसे बातें करना तो फिजूल है।'
रवि वहाँ से खिसक गया।
इस घटना के दो-तीन दिन बाद दोपहर बारह बजे डाक से दो रजिस्ट्रियाँ मिलीं। एक शर्मा के नाम दूसरी कमली के नाम। शर्मा जी को आश्चर्य हुआ कमली को यहाँ कौन पत्र लिख सकता है?
अपने नाम आये पत्र को पढ़कर शर्मा जी न घबराये, न चौंके। इसकी अपेक्षा उन्होंने की थी।
पर कमली को अपना पत्र पढ़कर बेहद आश्चर्य हुआ। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। ऐसा उसने क्या कर दिया है कि आरोप-पत्र रजिस्ट्री से उसे मिले।
पढ़ने के बाद रवि की ओर बढ़ा दिया।
रवि ने उसे पढ़ा, बाऊ का पत्र तो वह पढ़ ही चुका था। दोनों पत्रों का उद्देश्य एक था 'लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु', 'सर्वे जना सुखिनो भवन्तु' से प्रार्थना समाप्त करने वाले अपने पड़ोसी को भी