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तुलसी चौरा :: १२५
 


सुखी नहीं देख पाते।

आस्तिक जनों की ओर से यह नोटिस भेजा गया था।

वकील के नोटिस में साफ वे ही आरोप लगाये गए थे। जो भास्तिक बुजुर्गों ने लगाए थे। नास्तिक को मठ की जमीन किराये पर उठाना तथा अनाचारी गैर धर्मावलंबियों को घर पर ठहराना।

कमली ने मंदिर में प्रवेश किया था जो आगम को अपवित्र करने वाली तथा आस्तिक जनों की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली सायास कोशिश थी। इसलिए कमली पर कानूनन् कार्यवाही करने की धमकी थी।

रवि ने कमली का पत्र बाऊ को पढ़ा दिया। पढ़ने के बाद दोनों ही पत्र शर्मा जी ने अपने पास रख लिए।

'तुम फिक्र मत करो बिटिया, मैं देख लूँगा।'

कमली के पत्र में मन्दिर को शुद्ध करने का मुआवजा दण्डस्वरूप उसे ही उठाने का आदेश दिया गया था। शर्मा जी समझ गए कि सीमावय्यर ने अपना आखिरी पासा फेंक दिया है। शर्मा जी को विश्वस्त सूत्रों से पता चल गया था। आगजनी वाली घटना में भी सीमावय्यर का ही हाथ था।

'मैं किसी वकील से मिल आऊँ।' रवि ते पूछा।

'नहीं, मैं फिर तुम्हें कहूँगा। वेणुकाका इसमें काफी जानकारी रखते हैं। उनसे पहले मिल लें।'

'ठीक है बाऊ।'

शर्मा जी वेणूकाका के धर चल दिये। उनके आगे बैलगाड़ी से सीमावय्यर जा रहे थे। उन्हें देखते ही सीमावय्यर ने इस तरह हाल चाल पूछा, जैसे इस बीच कुछ घटा ही नहीं।

शर्मा ने भी हँसते हुए प्रत्युत्तर दिया।

'आप बाहर थे, तब सुना आग लग गयी थी। समय ही खराब चल रहा है।'