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तुलसी चौरा :: १२९
 


ही नहीं रहती। न ही उन अफवाहों में कोई शालीनता होती है। अफवाह फैलाने वाले भी ऐसी शालीनता का ध्यान नहीं रखते। साधारण से साधारण घटनाओं को विकृत कर देखा जाता है।

रवि और कमली के बारे में कुछ खुसुर-पुसुर फैली हुई थी पर उसका आधार नहीं था। पर इरैमुडिमणि की गोष्ठी में भावी बहू के रूप में उसका परिचय करवाया जाना, फिर रवि के हाथ मालार्पण किया जाना, इन तमाम बातों ने अफवाहों को तूल दे डाला था।

शर्मा जी से ही खास लोगों ने इस बारे में सीधे पूछ लिया। शर्मा जानते थे कि बातों को छिपाने की भादत देशिकामणि में नहीं है। पर उन्होंने निश्चय किया कि इस सन्दर्भ में भी इरैमुडिमणि से बातें करेंगे।

कमली और रवि को मन्दिर भिजवाकर शर्मा नी इरैमुडिमणि से मिलने निकले।

पहले दुकान गए। वहाँ वह नहीं मिले। दामाद ही बैठा था। उसी ने बताया कि वे लकड़ी टाल में ही हैं।

दुकान में काफी भीड़ थी। साफ लग रहा था कि सीमावय्यर के प्रचार का कोई असर नहीं हुआ। अच्छी चीजें और सही दामों की वजह से दुकान चल निकली थी। ग्राहकों के प्रति विनम्र भाव से इरैमुडिमणि का दामाद पेश आता था―

शर्मा जी ने औपचारिकतावश पूछ लिया। 'कैसी चल रही है।'

'बढ़िया चल रही।' शर्मा जी वहाँ से रैमुडिमणि के पास पहुँचे। ट्रक से लकड़ियाँ उतर रही थीं।

'देशिकामणि, अकेले में बातें करनी है। यहाँ तो भीड़ है। घाट पर चलें।'

'बस दस मिनट बैठ जाओ। अभी निपटा देंगे।'

दस ही मिनट में इरैमुडिमणि लौट आए। दोनों बतियाते हुए घाट तक पहुँच गए। इरैमुडिमणि को एक जगह बिठाकर शर्मा ने