पृष्ठ:Tulsichaura-Hindi.pdf/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
तुलसी चौरा :: १३५
 


कन्यादान कौन करेगा।'

'केवल देंगे, तो उसके माँ बाप आ जायेंगे। पर इस मुहूर्त में तो उनका आ पाना असम्भव है। वेणुकाका से पूछ लें?'

'क्यों, उनसे भी पहले ही बातें कर ली। सभी तैयारी हो गयी है क्या?'

'न सोचा पूछ लें, शायद वे मान जाएँ।'

'चलो उनसे पूछ लो।'

'मैं कहाँ जाऊँगा, बाऊ जी, आपकी बात वे काटेंगे नहीं। पर अगर मेरा आना जरूरी है तो आऊँगा।'

'अरे यूँ ही आ जाओ। तुम्हें कुछ बोलना नहीं है। मैं खुद ही उनसे पूछ लूँगा।'

उन्हें लगा, रवि साथ आते शरमा रहा है। पर उनकी बात टाल नहीं सका। इस मामले में बात की रुचि और जल्दबाजी ने उसे हक्का- बक्का कर दिया था।

इसकी सुखद अनुभूति से वह उभर नहीं पाया। रास्ते भर बाऊ से वह कुछ बोल भी नहीं पाया। घर की सीढ़ियाँ उत्तरे तो एक सुहागन पानी का कलशा लिये सामने से आती दिख गयी। 'शगुन तो बहुत अच्छा है।' शर्मा ने कहा―

वे लोग पहुँचे तो वेणुकाका ओसारे पर ही बैठे थे। उनके पास वे एक थाल में फल-फूल, पान-सुपारी कच्ची इलायची के गुच्छे रखे थे। वेणुकाका उत्साह में थे।

'आइये, हमारे एस्टेट के मैनेजर अपने नये घर का गृह प्रवेश कर रहे हैं। अभी आये थे बुलौवा दे गये। क्या हुआ? बाप-बेटे एक साथ कैसे आ गये? इसे भी कोई नोटिस मिल गया है क्या?'

'नहीं! मन्दिर के लिये, अपने कहे के अनुसार बन्दा दिलवा दिया हैं। रसीद भी ले ली है?'

'शाबाश, फिर?'