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तुलसी चौरा :: १३७
 


सीमावय्यर उन्हें भी धमका कर रखेंगे। कहेंये यह शास्त्र सम्मत विवाह नहीं है। तो क्या कर लेंगे? खैर दिक्कतें आये भी तो कोई बात नहीं सम्हाल लूँगा।'

'उसकी कोई जरूरत नहीं है यार। आज तो अधिकांश पंडित और वैदिक ब्राह्मम शास्त्र और सन्त्रों को अच्छी कीमत पर बेच ही रहे हैं। दस रुपये की अतिरिक्त दक्षिणा दे देना तो देखना, सीमावय्यर के घर के पण्डित ही भागे चले आयेंगे।'

'ये यूरोपीय बड़े मजेदार लोग हैं। अपने पिताजी से कहकर इन अनुण्ठानों के लिये स्पये माँग कर लायी है। तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं। कमली से ही ले लेंगे।'

'बको मत यार। मुझे कौन सी परेशानी होनी है। इस तरह के तो दासियों विवाह मैं कर डालूँ। भगवान का दिया इतना कुछ है। मेरी एक और बिटिया होती तो क्या उसके लिये खर्च नहीं करता?'

'बात वह नहीं है, मुझे गलत मत समझना। कमली इसे कहीं बुरे अर्थों में न ले ले। इसलिये उसके ट्रैवलर्स चेक को मैं कैश करबा लेता हूँ।' रवि ने बीच में टोका।

'वाह! पहली बार तो ऐसा दामाद मिला है, जो लड़की के बाप से खर्च नहीं करवाना चाहता।' वेणुकाका रवि को देखकर हँस पड़े।

शर्मा या रवि ने उस वक्त देणुकाका को बातों का विरोध नहीं किया। बसंती के लिए रवि के माध्यम से ही तार दिलवा दिया।

'यह मत सोचना शादी के पहले ही दामाद से काम लेने लगा हूँ। जब विवाह शास्त्र सम्मत ढंग से हो रहा है, तो कायदा यही कहता है कि कमली यहाँ आकर रहे। उसके लिए साथ की भी तो जरूरत है। इसलिए बसंती को तो बुलवाना पड़ेगा। वह यहाँ रहेगी तो अच्छा लगेगा। उसे तो इस विवाह में बहुत रुचि है।'

रवि निकल गया।

'शर्मा, सच यार, मैं बेहद खुश हूँ। इतनी खुशी कभी नहीं रही।