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१४० :: तुलसी चौरा
 


रवि और उस फ्रेंच युवती के साथ आचार्य जी के दर्शन करने आएं। उनके पत्र से लगा जैसे बह दर्शन ही उनके लिए परीक्षा की वह बड़ी थी जिसके उत्तीर्ण होने या अनुत्तीर्ण होने पर उनकी भावी जिंदगी प्रभावित होगी। शर्मा बी समझ गए कि यह पत्र आचार्य जी की इच्छा पर ही लिखा गया होगा।

रवि को पन देते हुए बोले, 'उसे लेकर एक बार हो आओ आचार्य जी का आशिर्वाद मिल जायेगा।'

रवि मान गया। पर हौले से पूछ लिया, 'लोगों के पत्र पर ही मठवानों ने वहाँ आने को लिखा है। पता नहीं वहाँ क्या हो? वे बुला रहे हैं, आप भिजवा रहे हैं। हम लोग यही सोच कर जा रहे हैं, कि महाज्ञानी पूर्ण दृष्टि वाले पुण्यात्मा के दर्शन होंगे। इसमें कोई कठिनाई तो नहीं होगी।'

'कुछ नहीं होगा। हो आओ! उनका आशिर्वाद ले आओ।'

सोचने का या यात्रा की तैयारी का वक्त नहीं था। उसी दिन दोपहर वाली गाड़ी से निकल पड़े। अगले दिन सुबह साढ़े पाँच बजे ही वहाँ पहुँच गए।

श्रीमठ और पुरातन मन्दिरों के दर्शनार्थ आने वाले भक्त जनों और यात्रियों के लिए शहर में कुछ अच्छे लाँज और होटल बने हुए थे। उन्हीं में से एक जगह ठहर गए। नहा धो कर तैयार हो गये।

होटल मैनेजर ने बताया कि यह शहर से तीन चार किलो- मीटर दूर अमराई में आचार्य जो ठहरे हैं। चतुर्मास होने की वजह से वे मौन व्रत में हैं। केवल संकेतों में ही बातें करते हैं।

भीड़ के पहले जल्दी निकल जाएँ तो दर्शन आराम से हो सकते हैं। उसने स्वयं एक टैक्सी का प्रबन्ध कर लिया।

कमलो ने बंधेज की सूती साड़ी पहन रखी थी। माथे पर टीका और गीले बालों का जूड़ा बना लिया था। गोरा रंग, नीली आँखें और भूरे बाल न होते तो वह एक भारतीय स्त्री ही लगती। एकाध