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तुलसी चौरा :: १४१
 


डायरियाँ उसने हाथ में रख ली।

रवि ने जरी के किनारे की धोती, उत्तरीय पहन लिया था। फलों की दुकान पर रुक कर उसने फल और तुलसी की माला ले ली।

पूर्व दिशा लाल होनी लगी थी, कि दोनों निकल पड़े इतनी सुबह की यह यात्रा उन्हें बहुत पवित्र और निश्छल लगी। मन और देह शांत थे।

इतनी सुबह भी अमराई के बाहर चार पाँच टूरिस्ट बसें, दस बारह कारें, कुछ इक्के वाले खड़े थे। अमराई के बीचोंबीच तालाब के किनारे एक पर्णशाला बनी थी जिसमें वे ठहरे थे। अगरुगंध, कपूर और चंदन की मिली जुली महक वहाँ फैली हुई थी। कई पुरुष और स्त्रियाँ दर्शनार्थ खड़े थे।

रबि कमली के साथ श्रीमठ के संचालक के पास गया। उन्होंने उनका स्वागत किया और कुशल क्षेम पूछ लिया। सहसा कमली को देखकर बोले, 'आपको संस्कृत के शास्त्रों से और भारतीय संस्कृति के प्रति इतना लगाव है, यह सुनकर आचार्य जी को बहुत प्रसन्नता हुई।

कमलो और रवि को पहली बार एहसास हुआ कि उनके बारे में पहले ही चर्चा की जा चुकी है।

उन्होंने कमली को बताया कि कि वे चतुर्मास व्रत में हैं। संकेतों से ही बातें करेंगे। वकील के नोटिस के बारे में या उन गुम- नाम पत्रों के बारे में कोई बातचीत नहीं हुई।

दर्शनार्थियों की भीड़ में वे भी शामिल हो गये। एक यूरोपीय युवती को भारतीय परिधान में वहाँ आया देखकर बाकी लोगों की जिज्ञासा फैल गयी। कुछ ने रवि से पूछ लिया, कुछ लोगों ने कमली से पूछा। पर कमली ने तमिल में ही उत्तर दिया। कमली के आस-पास महिलाओं की भीड़ लग गयी।