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तुलसी चौरा :: १४३
 


अनुभव था।

एकाध जगह फिर से पढ़ने का संकेत किया। वह उनके संकेत करने पर रोक लेना चाहती थी पर वे तो सुनते ही चले गये। समय का किसी को ध्यान नहीं रहा। सौन्दर्य लहरी और 'कनक धारा स्तोत्र' समाप्त करने पर उसके पृष्ठ बंद कर लिया। आचार्य जी ने संकेत से पूछा, 'कुछ और काम चल रहा है?' कमली संकेत समझ गयी, 'भजगोबिन्दम' का अनुवाद कर रही हूँ।' मुँह पर हथेली रखकर बात करने की उस विनम्रता पर सब मुग्ध हो रहे थे।

आचार्य जी ने संकेत किया, कि 'भजगोबिन्द' से भी एकाध अनु- बाद सुना दे। 'पुनरपि जनमें पुनरपि मरणम् पुनरपि जननी जठरे शयनम्' का फ्रेंच अनुवाद सुनाया।

आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने संकेत से जो कुछ कहा, कमली को उसे समझने में कहीं गलती नहीं हुई।

महात्मा अपने विचारों को वगैर शब्द के ही दूसरों को समझा सकते हैं शब्द और कान इनका उपयोग तो अज्ञानियों के लिए हैं। महात्मा इन दोनों माध्यमों के बिना ही अपने विचारों का सम्प्रेषण कर देते हैं।

बहुत देर के बाद उनकी दृष्टि रवि पर गयी। अपने विनम्र भाव से अपने और कमली के विषय में कुछ सूचनाएँ दीं। फ्रांस में भारतीय भाषाओं के छात्रों के विषय में बताया। कमली की विशेषताओं का जिक्र किया।

फलों के थाल में से एक अनार, सेव और तुलसी की माला आचार्य ने उठायी। रवि के हाथ में सेव और कमली के हाथ में अनार रख दोनों को आशीर्वाद दिया। साष्टांग प्रणाम करके वे लोटने लगे थे कि कमली ने सहसा अपना फोटोग्राफ उनके सामने कर दिया। रवि चौंक गया। ऐसी कोई प्रथा यहाँ प्रचलित नहीं है। पता नहीं, आचार्य जी विगड़ जाएँ तो। पर उन्होंने मुस्कराते हुए कुंकुम और अक्षत को पृष्ठ