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१४४ :: तुलसी चौरा
 


पर बिखेर दिया। फिर आने का संकेत भी किया।

रवि ने उपर आकर घड़ी देखी। पौने ग्यारह हो रहे थे। अमराई में अभी धूप नहीं पसरी थी। मैनेजर प्रसाद और प्रकाशित पुस्तकें ले आए।

बोले, 'आचार्य जी कलम उठाकर हस्ताक्षर कभी नहीं करते पर इनके ऊपर उनकी कृपा रही, इसलिए अक्षत और कुमकुम उस पर बिखेर दिया। इसके पहले कइयों ने इस तरह माँगे हैं। तब वे संकेत से उन्हें जाने को कह देते। पर आज पहली बार हँस कर अक्षत कुमकुम बिखेर दिया। आप सचमुच भाग्यशाली हैं।' वे लोग लौटने लगे तो बोले, 'जब सौन्दर्य लहरी कनकधारा स्तोत्र फ्रेंच में अनूदित कर छप जाये तो एक प्रति जरूर भिजवाएँ।'

रवि और कमली होटल में कॉफी पी रहे थें। तो मठ का चपरावी एक बड़ा लिफाफा उन्हें दे गया। लिफाफे पर बाऊ का नाम था।

XXX
 

घर लौटते हुए उनका मन सन्तुष्ट था। आचार्य जी ने कोई सवाल नहीं किया। कोई बात नहीं पूछी। उन्हें आशीर्वाद भिजवाया था। उनकी उदारता, उनकी करुणा का ध्यान आते ही, वे सिहर उठे। उसी दिन बसन्ती भी बम्बई से लौटी थी। आते ही पहला काम यही किया कि कमली को असबाब समेत घर ले गयी। चार दिनों वाले विवाह के बाद ही उसे इस घर में प्रवेश करना है, यह तय हुआ था। तब तक उसे बेणुकाका के घर ही रहना है। जब से रवि श्रीमठ से लौटा है अम्मा के व्यवहार में एक खास परिवर्तन देखा कि उसमें और बाऊ से बातचीत एकदम बन्द कर दी थी। वे लोग अपने से बातें करते भी तो जवाब न देकर मुँह घुमा कर चल देती।

'जब से तुम मठ गये हो यही हाल है। वेणुकाका और मेरी बात इसके कानों तक जाने कैसे पहुँच गयी।'