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तुलसी चौरा :: १३
 

और फिर यदि गाँव उपजाऊ क्षेत्र में हो, तो फिर पूछना ही क्या। एक के बाद एक समस्यायें। कोई अंत ही नहीं। शंक रमंगलम की जमीन बेहद उपजाऊ है। तिस पर अगस्त्य नदी, कभी सूखने का नाम नहीं लेती। सोना उगलने वाली धरती। गाँव से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीने वालों में वेणु काका के बेटे सुरेश का नाम सबसे पहले लिया जाता है। हालांकि इस गाँव के कई लोग अच्छे उद्योगों में लगे हैं, कुछ ऊँचे सरकारी ओहदों पर हैं, कुछेक कम्पनी के प्रबन्धक भी हैं, पर सुरेश के बाद शर्मा जी का बेटा रवि ही है, जिसे सम्मान हासिल हुआ है। चार पाँच वर्ष पहले रवि ने जब इस नौकरी के लिये आवेदन भिजवाया था, तो उसने कल्पना भी नहीं की थी कि यह नौकरी उसे मिलेगी।

फ्रांस स्थित एक विश्वविद्यालय में 'प्रोफेसर ऑफ इंडियन स्टडीज- एंड ओरियंटल लैंगबेज डिपार्टमेंट' के रिक्त पद के लिये वह विज्ञापन 'इंजियन काउंसिल फाँर कल्चरल रिलेशन्स' की ओर से दिया गया था। अनिवार्य योग्यताओं में पी. एच. डी. के अतिरिक्त तमिल, संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी और फ्रेंच के विशेष ज्ञान की आवश्यकता पर बल दिया गया था। रवि के पास ये तमाम योग्यताएँ थीं। एक साल की बेकारी में, उसने फ्रेंच की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया था। वहीं डिप्लोमा तब काम आ गया।

दिल्ली में हुए इन्टरव्यू में कुल छह लोग आये थे। दो तो उम्र की वजह से रह गये। बाकी बचे लोगों में किसी को फ्रेंच का ज्ञान नहीं था, किसी को संस्कृत का सो खारिज कर दिया गया। बाजी मार ली, रवि ने।

शुरू में शर्मा जी हिचकिचाए, पर जो मासिक आय वहाँ मिल रही थी, उसकी तो कल्पना तक भारत में नहीं की जा सकती थी। लिहाजा बेटे को भिजवाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। रवि की विदेशी नौकरी का संक्षिप्त इतिहास यही है।