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तुलसी चौरा :: १५१
 


उन्होंने फिर अकेले में छेड़ा तो वह चीखी चिल्लाई। पीछे ही इरैमुडिमणि के संगठन के कार्यकर्त्ता आ रहे थे। उन्होंने सीमावय्वर को रंगे हाथों पकड़ लिया और नारियल के पेड़ से बाँध दिया। इरैमुडिमणि को कहलवाया गया और वे पुलिस को खबर कर आए। सीमावय्यर के नौकर इन लोगों का सामना नहीं कर पाए और उन लोगों ने अहमद अली को खबर पहुँचाई। पैसे का सारा खेल खेल लिया गया, पुलिस समय पर नहीं पहुँची। पर सीमावय्यर को छुड़ाने के लिए अहमद अली ने किराये के गुण्डों की एक छोटी सी फौज ही भेज दी थी, अंधेरा घिरते ही उन लोगों ने सीमावय्यर को छुड़ाया था।

फिर वहाँ जो मार काट मची, उसमें इरैमुडिमणि और उनके कुछ साथियों को हँसिए के गहरे घाव लगे। इससे पहले कि पुलिस पहुँचे, गुंडे भाग लिए।

सीमावय्यर बच कर भागे ही नहीं बल्कि उन्होंने दो तीन साक्ष्य भी तैयार कर लिए जिन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि घटना के वक्त सीमावय्यर शिव मंदिर में थे।

पुलिस वालों ने इरैमुडिमणि और संगठन के कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया कि वे उन लोगों ने सीमावव्यर के बाग में जवरन प्रवेश कर वहाँ उत्पात मचाया। इरैमुडिमणि के बायें कंधे पर गहरा घाव था। शंकरमंगलम के अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल पहुँ- चने में देर हो गयो काफी खून निकल गया था। खबर लगते ही शर्मा, रवि, कमली, घबराये हुए अस्पताल पहुँचे। इरैमुहिमणि का परिवार और वह उनके मित्र वहाँ जमा थे। खून दिया जाना था। कई लोग आगे आये पर किसी का खून उनके खून से नहीं मिल पाया।

डॉ॰ ने शर्मा को देखा।

'मेरा भी खून जाँच लीजिए।' शर्मा जी ने सहर्ष कहा। शर्मा जी का खून उसी ग्रुप का था। अगले दिन सुबह इरैमुडिमणि होश में आए। शर्मा जी को छेड़ते हुए बोले, 'हमारे संगठन के आदमी घबरा रहे