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१५२ :: तुलसी चौरा
 


हैं, कि मैं ठीक होने के बाद आस्तिक बन जाऊँगा। सुना है खून तुमने दिया है।' पास ही में खड़े एक कार्यकर्ता ने कहा, 'एक बाँमन ने अपना खून बहाया था, दूसरे ने उसको खून देकर बचाया।' इरैमुडिमणि ने उसे धुरा। 'देखो! तुम बाहर रहो, मैं फिर बुलाऊँगा।'

शर्मा भी तुरन्त बोले, 'उन पर क्यों बिगड़ रहे हो। ठीक ही तो कहा है, उन्होंने।' पर व कार्यकर्त्ता जा चुका था। इरैमुडिमणि बोले, 'देख, सीमावय्यर ने कैसे बात पत्तट दी। हम पर उलटा आरोप लगा दिया कि उनके बाग में हम लोगों ने घुस कर उत्पात मचाया है। उस मरदुए ने तो साबित कर दिया कि वे उस समय शिव मंदिर में पूजा कर रहे थें। देखा, अपनें पर पड़ी तो भगवान को साक्षी बना डाला।'

'साक्षी जो भी हो। पर अन्याय करने वालों का विनाश निश्चित है।'

'पर कहाँ हुआ, विश्वेश्वर? देखो न, हम लोग पड़े हैं अस्पताल में। वहाँ तो चार पैसे वाले कानून पुलिस सबको खरीद लेते हैं।'

'ठीक कहते हो, आज ईश्वर पर विश्वास करने वालों की तुलना में सुविधा भोगी लोगों की संख्या अधिक है। मेहनत और ईमानदारी से कोई काम नहीं करना चाहता। नेक और ईमानदार बनने को अपेक्षा नेक और ईमानदार दिखने में लोग ज्यादा विश्वास करने लगे हैं। वेद पाठ करने वाले झूठ भी बोलने लगे हैं। सीमावय्यर अव ईश्वर से ज्यादा अहमद अली के रुपयों पर भरोसा करने लगे हैं।

'पर जहाँ तक मेरा प्रश्न है। जो दूसरों को धोखा नहीं देता, मेहनत और ईमानदारी से जीता है, छल-कपट से दूर रहता है, वही सच्चा आस्तिक है। जो दूसरों को धोखा देकर, छल-कपट से कमाता है। मेहनत नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति को मैं नास्तिक ही मानूँगा।

'यह तो तुम्हारा कहना है न। लोगों की नजरों में तो सीमावय्यर आस्तिक है और मैं नास्तिक।

'ऐसा चाहे जो सोचे पर मैं तुम्हारे बारे में कतई नहीं सोच सकता।'